________________ 460 जीतकल्प सभाष्य / 1895. इस प्रकार प्रत्येक स्थान में क्रमशः नीचे की ओर कम करके नियमतः प्रायश्चित्त को निर्विगय तक जानना चाहिए। 1896. नवविध व्यवहार की काल के साथ जो प्रायश्चित्त-प्राप्ति की बात विस्तार से कही गई है, उसे बुद्धि से जानना चाहिए। 1897. अथवा लघुस्वक आदि त्रिविध को संक्षेप में कहा, अब विस्तार से कहूंगा। यह जघन्य, मध्यम . और उत्कृष्ट भेद से तीन प्रकार का होता है। 1898. लघुस्वक पक्ष में पांच, दस तथा पन्द्रह दिन तप की प्राप्ति होती है। लघुक पक्ष में बीस दिन, भिन्नमास (पच्चीस दिन) तथा लघुमास (तीस दिन) प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1899. गुरुपक्ष में गुरुमास, चतुर्मास तथा छह मास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। यह नवविध प्रायश्चित्त की प्राप्ति है, इसका तप रूप प्रायश्चित्त-दान नौ प्रकार का है, वह इस प्रकार कहूंगा। 1900. लघुस्वक पक्ष में निर्विगय, पुरिमार्ध तथा एकासन प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है तथा लघुकपक्ष में आयम्बिल, उपवास तथा बेले तप की प्राप्ति होती है। 1901. गुरुपक्ष में तेला, चोला तथा पंचोले तप की प्राप्ति होती है। यह नवविध प्रायश्चित्त-दान है अथवा इसकी नवविध प्रायश्चित्त की प्राप्ति इस प्रकार है। 1902. लघुस्वक पक्ष में लघुगुरु के त्रिविध प्रायश्चित्त होते हैं-पांच दिन, दस दिन तथा पन्द्रह दिन। लघुपक्ष में लघुगुरु के त्रिविध प्रायश्चित्त होते हैं-बीस दिन, भिन्न मास (पच्चीस दिन) तथा एक मास। 1903. गुरुकपक्ष में लघुगुरु के त्रिविध प्रायश्चित्त हैं-गुरुमास-दो मास, तीन-चार मास, पांच-छह मास-ये लघुगुरु के नवविध प्रायश्चित्त होते हैं। 1904. यह नवविध प्रायश्चित्त-प्राप्ति का संक्षेप में वर्णन किया गया, सत्तावीस प्रकार का तपदान इस प्रकार होता है। 1905, 1906. लघुस्वक पक्ष, लघुक पक्ष और गुरुपक्ष-इन तीनों में प्रत्येक के नौ-नौ भेद होते हैं१. जघन्य-जघन्य 2. जघन्य-मध्यम 3. जघन्य-उत्कृष्ट 4. मध्यम-जघन्य 5. मध्यम-मध्यम 6. मध्यमउत्कृष्ट 7. उत्कृष्ट-जघन्य 8. उत्कृष्ट-मध्यम और 9. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट। 1907. लघुस्वक व्यवहार के ये नौ भेद संक्षेप में कहे गए। लघुपक्ष और गुरुपक्ष में भी ये ही भेद जानने चाहिए। 1908. वर्षाकाल में यथालघुस्व के जघन्य-जघन्य में एकासन, जघन्य-मध्यम में आयम्बिल तथा जघन्य-उत्कृष्ट में उपवास का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1909. वर्षाकाल में लघुस्वतर के मध्यम-जघन्य में आयम्बिल, मध्यम-मध्यम में उपवास तथा मध्यमउत्कृष्ट में बेले का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1910. वर्षाकाल में लघुस्वक के उत्कृष्ट जघन्य में उपवास, उत्कृष्ट मध्यम में बेला तथा उत्कृष्टउत्कृष्ट में तेले के तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए।