________________ 458 जीतकल्प सभाष्य 1865. अब मैं वर्षा, शिशिर और ग्रीष्म में उत्कृष्ट-उत्कृष्ट आदि तथा गुरुक, लघुक आदि की चारणिका संक्षेप में कहूंगा। 1866. वर्षाकाल में यथागुरुक के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में पंचोला, उत्कृष्ट-मध्यम में चोला तथा उत्कृष्टजघन्य में तेले तप की प्राप्ति होती है। 1867. शिशिर काल में यथागुरुक के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में चोला, उत्कृष्ट-मध्यम में तेला तथा उत्कृष्टजघन्य में बेला तप की प्राप्ति होती है। 1868. ग्रीष्मकाल में यथागुरुक के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में तेला, उत्कृष्ट-मध्यम में बेला तथा उत्कृष्टजघन्य में उपवास तप की प्राप्ति होती है। 1869. वर्षाकाल में गुरुकतर के मध्यम-उत्कृष्ट में चोला, मध्यम-मध्यम में तेला तथा मध्यम-जघन्य में बेले के तप की प्राप्ति होती है। 1870. शिशिरकाल में गुरुकतर के मध्यम-उत्कृष्ट में तेला, मध्यम-मध्यम में बेला तथा मध्यम-जघन्य में उपवास तप की प्राप्ति होती है। 1871. ग्रीष्मकाल में गुरुक के मध्यम-उत्कृष्ट में बेला, मध्यम-मध्यम में उपवास तथा मध्यम-जघन्य में आयम्बिल तप की प्राप्ति होती है। 1872. वर्षाकाल में गुरुक के जघन्य-उत्कृष्ट में तेला, जघन्य-मध्यम में बेला तथा जघन्य-जघन्य में उपवास तप की प्राप्ति होती है। 1873. शिशिरकाल में गुरुक के जघन्य-उत्कृष्ट में बेला, जघन्य-मध्यम में उपवास तथा जघन्य-जघन्य में आयम्बिल प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1874. ग्रीष्मकाल में गुरुक के जघन्य-उत्कृष्ट में उपवास, जघन्य-मध्यम में आयम्बिल तथा जघन्यजघन्य में एकासन तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1875. वर्षाकाल में लघुक के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में चोला, उत्कृष्ट-मध्यम में तेला तथा उत्कृष्ट-जघन्य में बेले के तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1876. शिशिरकाल में लघुक के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में तेला, उत्कृष्ट-मध्यम में बेला तथा उत्कृष्टजघन्य में उपवास तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1877. ग्रीष्मकाल में लघुक पक्ष के उत्कृष्ट-उत्कृष्ट में बेला, उत्कृष्ट-मध्यम में उपवास तथा उत्कृष्ट-जघन्य में आयम्बिल तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1878. वर्षाकाल में लघुकतर के मध्यम-उत्कृष्ट में तेला, मध्यम-मध्यम में बेला तथा मध्यम-जघन्य में उपवास तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए। 1879. शिशिरकाल में लघुकतर के मध्यम-उत्कृष्ट में बेला, मध्यम-मध्यम में उपवास तथा मध्यमजघन्य में आयम्बिल तप का प्रायश्चित्त देना चाहिए।