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________________ अनुवाद-जी-६७ 457 1849. लघुमास, भिन्नमास तथा बीस दिन-ये त्रिविध लघुपक्ष में प्राप्त होते हैं। पन्द्रह, दश और पांच दिन-ये लघुस्वक में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त होते हैं। 1850. नव भेद की तप-प्राप्ति के बारे में संक्षेप में वर्णन किया। अब सत्तावीस प्रकार के तप-दान का वर्णन इस प्रकार है१८५१, 1852. गुरुपक्ष, लघुपक्ष और लघुस्वक पक्ष में प्रत्येक के नौ-नौ भेद होते हैं-उत्कृष्टउत्कृष्ट, उत्कृष्ट-मध्यम तथा उत्कृष्ट-जघन्य, मध्यम-उत्कृष्ट, मध्यम-मध्यम और मध्यम-जघन्य, जघन्य-उत्कृष्ट, जघन्य-मध्यम तथा जघन्य-जघन्य। . 1853, 1854. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, उत्कृष्ट-मध्यम, उत्कृष्ट-जघन्य, मध्यम-उत्कृष्ट, मध्यम-मध्यम और मध्यम-जघन्य, जघन्य-उत्कृष्ट, जघन्य-मध्यम तथा जघन्य-जघन्य-यह नवविध व्यवहार लघुपक्ष में होता है। 1855, 1856. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, उत्कृष्ट-मध्यम, उत्कृष्ट-जघन्य, मध्यम-उत्कृष्ट, मध्यम-मध्यम तथा मध्यम- जघन्य, जघन्य-उत्कृष्ट, जघन्य-मध्यम और जघन्य-जघन्य-यह नवविध व्यवहार लघुस्वक पक्ष में जानना चाहिए। 1857. छह और पांच मास में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान इस प्रकार होता है-पंचोला, चोला और तेला। चतुर्मास और तीन मास में चोला, तेला और बेला---ये उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त हैं। 1858. दो मास और गुरुमास में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान इस प्रकार हैं-तेला, बेला और उपवास। यह गुरु पक्ष का नवविध व्यवहार है। 1859. लघुमास का उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान चोला, तेला और बेला तथा भिन्नमास में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान तेला, बेला और उपवास प्राप्त होता है। .1860. बीस दिन में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान बेला, उपवास और आयम्बिल है। यह लघुपक्ष का दूसरा नवविध व्यवहार जानना चाहिए। 1861. पन्द्रह दिन में उत्कृष्ट आदि त्रिविध प्रायश्चित्त-दान तेला, बेला और उपवास तथा दस दिन में बेला, उपवास और आयम्बिल-ये विविध प्रायश्चित्त-दान हैं। 1862. पणग-पांच दिन-रात में उत्कृष्ट आदि प्रायश्चित्त-दान उपवास, आयम्बिल और एकासन प्राप्त होता है। यह तृतीय लघुस्वक पक्ष का नवविध व्यवहार है। यह वर्षाकाल में सत्तावीस प्रकार का व्यवहार है। 1863. शिशिरकाल में चोले आदि से लेकर पुरिमार्ध तक चारणिका भेद से अर्ध-अपक्रान्ति से सत्तावीस भेद होते हैं। 1864. ग्रीष्मकाल में तेला आदि से लेकर निर्विगय तक चारणिका भेद से अर्ध अपक्रान्ति से सत्तावीस भेद होते हैं।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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