________________ 450 जीतकल्प सभाष्य 1773. चर्म पंचक इस प्रकार है-१. गाय 2. महिष 3. अजा 4. एलक 5. तथा मृग / 1774. अथवा दूसरा चर्मपञ्चक इस प्रकार है-१. तलिका 2. खल्लक' 3. वर्ध 4. कोशक 5. कत्ती —इन पांचों पंचक के भेद स्वयं व्याख्यायित करने चाहिए। 56. गुरु की आज्ञा के बिना स्थापना कुल में प्रवेश और निगमन करने पर तथा वीर्य का गोपन करने पर जीतव्यवहार से एकासन प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है तथा शेष अन्य प्रकार की माया. करने पर उपवास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1775. दानश्राद्ध आदि के स्थापना-कुलों में गुरु से बिना पूछे प्रवेश-निगर्मन तथा भक्तपान आदि ग्रहण करने पर एकासन प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1776. वीर्य, सामर्थ्य, पराक्रम-ये तीनों शब्द एकार्थक हैं। गूहन, गोपन, णूमन, पलिकुंचन-ये चारों शब्द माया के एकार्थक हैं। 1. आधे या पूरे पैर का जूता। निशीथ चूर्णि के पाद-टिप्पण में उल्लेख है कि जो आधे पैर को आच्छादित करता है, वह अर्धखल्लक है तथा जो सम्पूर्ण पैर को आच्छादित करता है, वह समस्त खल्लक है। १.निचू भा. 2 पृ.८७ ; या पादार्धमाच्छादयति सा अर्धखल्लका।या च सम्पूर्णपादमाच्छादयति सा समस्तखल्लका। 2. पाषाण आदि से प्रतिस्खलित होकर पैर के नख भग्न न हों, इस बुद्धि से अंगुलि और अंगुष्ठ को जिससे आच्छादित किया जाता है, वह कोशक है। निशीथ भाष्य में वग्गुरी, खपुस आदि उपानत् तथा इनसे सम्बन्धित प्रायश्चित्त का विस्तार से वर्णन है। विस्तार हेतु देखें निभा 914-47 / १.निचू भा. 2 पृ. 87 ; यत्र तु पाषाणादिषु प्रतिस्खलिताः पादनखा मा भज्यन्तामिति बुद्ध्याङ्गुलिरंगुष्ठो वा प्रक्षिप्यते स कोशकः। 3. दान देने वाले श्रद्धालु, यथाभद्र श्रावक आदि के घर स्थापना कुल कहलाते हैं। इन कुलों में एक संघाटक आहार लेकर निर्गमन कर देता है तो शेष उस कुल में प्रवेश नहीं करते। स्थापना कुल का दूसरा अर्थ है-जो स्थाप्यअभोज्य कुल है, वह स्थापना कुल कहलाता है। इसका अन्य अर्थ है-गीतार्थ द्वारा स्थापित विशिष्ट कुला निशीथ सूत्र एवं उसके व्याख्या साहित्य में स्थापना कुल का विस्तार से वर्णन मिलता है। स्थापना कुल दो प्रकार का होता है-लौकिक और लोकोत्तर / लौकिक स्थापना कुल-सूतक और मृतक वाले कुल इत्वरिक काल के लिए निषिद्ध स्थापित होते हैं लेकिन जो कुल, कर्म, शिल्प और जाति आदि से जुगुप्सित या अभोज्य होते हैं, वे यावत्कथिक स्थापना कुल हैं। लोकोत्तर स्थापना कुल भी दो प्रकार के होते हैं -वसति से संबद्ध-उपाश्रय के पास वाले सात घर सम्बद्ध कहलाते हैं। इनमें आधाकर्म की संभावना रहती है अत: वहां से आहार-पानी नहीं लेना चाहिए। वसति से असम्बद्ध, श्रद्धालु, अणुव्रती, सम्यग्दृष्टि आदि के कुल गीतार्थ के अलावा शेष के लिए निषिद्ध होते हैं अथवा अप्रीतिकर कुल सर्वथा स्थाप्य होते हैं। बिना पृच्छा के स्थापनाकुलों में प्रवेश करने वाला लघुमासिक प्रायश्चित्त का भागी होता है। १.जीचूप.१९; दाणसङ्क-अहाभद्दसन्निमाईणि ठवणकुलाणि..तेस्य कुलेसएगोचेव संघाडगोणिव्विसइ सेसा न पविसंति। २.निचू२ पृ. 243 ठप्पा कुला ठवणाकुला अभोज्ज इत्यर्थः।साधुठवणाए वा ठविज्जति त्ति ठवणकुला सेज्जातरादित्यर्थः / / 3. निभा 1617, 1618 चू. पृ. 243 / 4. निभा 1619-22 चू. पृ. 244 /