________________ अनुवाद-जी-५१-५४ 447 1748. अशन, पान, खादिम, स्वादिम आदि चार प्रकार का आहार होता है। उनका संवरण न करने पर साधु की पुरिमार्ध तप से शोधि होती है। 1749. अथवा साधु यदि नमस्कारसहिता (नवकारसी) आदि सब प्रकार के प्रत्याख्यान स्वीकृत नहीं करता है अथवा स्वीकार करके उसका भंग करता है तो उसकी शोधि पुरिमार्ध तप से होती है। 51. इसी प्रकार सामान्य रूप से तप, प्रतिमा', अभिग्रह आदि ग्रहण न करने पर पुरिमार्ध तप की प्राप्ति होती है। पाक्षिक आदि तप न करने पर पुरुष भेद से निर्विगय आदि तप से शोधि जाननी चाहिए। 1750. पुरिमार्ध तप सामान्य रूप से जानना चाहिए। तप, प्रतिमा तथा अभिग्रह आदि ग्रहण न करने पर या उसका भंग करने पर होने वाले प्रायश्चित्त को मैं कहूंगा। 1751. तप बारह प्रकार का होता है, प्रतिमा एकरात्रिकी आदि होती है, द्रव्य आदि अभिग्रह होते हैं, इनको ग्रहण न करने पर अथवा भंग करने पर पुरिमार्ध तप की प्राप्ति होती है। 1752. पश्चार्द्ध गाथा की व्याख्या इस प्रकार जाननी चाहिए। क्षुल्लक, भिक्षु आदि पांचों को पाक्षिक तप न करने पर उसकी शोधि निर्विगय से लेकर उपवास तप पर्यन्त होती है। 1753. चातुर्मासिक तप न करने पर क्षुल्लक को पुरिमार्ध, भिक्षु को एकासन, स्थविर को आयम्बिल, उपाध्याय को उपवास तथा आचार्य को बेले के तप की प्राप्ति होती है। 1754. प्रतिदिन यथाशक्ति प्रत्याख्यान ग्रहण न करने पर क्षुल्लक, भिक्षु, स्थविर, उपाध्याय तथा आचार्य की क्रमशः एकासन, आयम्बिल, उपवास, बेला तथा तेले के तप से शोधि होती है। 52. कायोत्सर्ग में (निद्रा आदि प्रमाद से) विचलित होने पर, गुरु से पहले स्वयं कायोत्सर्ग पूरा करने पर, बीच में ही कायोत्सर्ग भंग करने पर, वंदना आदि न करने पर क्रमशः निर्विगय, पुरिमार्ध, एकासन तथा सर्व कायोत्सर्ग से विचलित आदि होने पर आयम्बिल तप से शोधि होती है। 1755, 1756. एक बार कायोत्सर्ग से विचलित होने पर निर्विगय, दो बार विचलित होने पर पुरिमार्ध, तीन बार विचलित होने पर एकासन तथा सम्पूर्ण कायोत्सर्ग से विचलित होने पर अथवा एक साथ प्रतिक्रमण करने पर उसकी शोधि आयम्बिल तप से होती है। उत्सार-कायोत्सर्ग सम्पन्न करने का प्रायश्चित्त इस प्रकार कहूंगा। १.प्रतिमा का अर्थ है-साधना की विशिष्ट पद्धति। श्रावक की ग्यारह तथा भिक्षु की बारह प्रतिमाएं होती हैं। भिक्षु की बारह प्रतिमाएं इस प्रकार हैं-१. एकमासिकी 2. द्विमासिकी 3. त्रैमासिकी 4. चातुर्मासिकी 5. पंचमासिकी 6. पाण्मासिकी 7. सप्तमासिकी 8. सप्त अहोरात्रिकी 9. सप्त अहोरात्रिकी 10. सप्त अहोरात्रिकी 11. एक अहारोत्रिकी १२..एकरात्रिकी। 1. विस्तार हेतु देखें दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा तथा श्रीभिक्षु आगम शब्द कोश भा. 1 पृ. 438,439 / 2. गाथा के पूर्वार्द्ध का पिछली जीसू५० वीं गाथा से सम्बन्ध है अतः पुरिमार्ध तप की प्राप्ति का वहां से अध्याहार करना होगा। 3. अभिग्रह का अर्थ है-प्रतिज्ञा लेना। यह अभिग्रह चार प्रकार का होता है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव।