________________ 444 जीतकल्प सभाष्य . 44. सहसा या अनाभोग से जिन स्थानों में प्रतिक्रमण कहा है, उनको जानते हुए करने पर, बहुत बार या अतिप्रमाण में खाने पर निर्विगय प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1719-21. सहसा या अनाभोग से पूर्वोक्त जिन-जिन स्थानों में प्रतिक्रमण कहा गया है, उन सब स्थानों को जानते हुए करने पर तथा बहुश:-बार-बार खाने या अतिप्रमाण में आहार करने पर सर्वत्र निर्विगय से शोधि होती है। 45. धावन, डेवन-लांघना, साथ में दौड़-प्रतियोगिता, क्रीड़ा, कुहावणा-आश्चर्य पैदा करने वाली दम्भक्रिया, पुत्कार, गीत, श्लेष्म की आवाज, जीव विशेष की आवाज करने पर उसका प्रायश्चित्त उपवास है। 1722-26. अतिरिक्त तेज गति से चलने पर, नाले आदि को लांघने पर, संघर्ष गमन-दो व्यक्तियों में कौन शीघ्र गति से चलता है-यह स्पर्धा करने पर, चौपड़, चौरस, जूआ आदि खेल खेलने पर, कुहावणा' का अर्थ है-इंद्रजाल, वृत्त खेल, आदि शब्द से समास, प्रहेलिका तथा कुहेटक-चमत्कार उत्पन्न करने वाला मंत्र-तंत्र आदि जानना चाहिए। उत्कृष्टि का अर्थ है-तीव्र ध्वनि से द्वारा कंठ गाया जाने वाला गीत। सीटी बजाना, सीत्कार करना छेलिय कहलाता है। संकेत करना संगार है। कोयल, मयूर आदि प्राणियों की आवाज जीवरुत कहलाती है। धावण आदि समस्त स्थानों में यथाक्रम से प्रत्येक की शोधि उपवास तप से होती है। 46. जघन्य आदि तीनों प्रकार की उपधि के गिरने पर, प्रतिलेखना विस्मृत होने पर तथा आचार्य को निवेदन न करने पर क्रमशः निर्विगय, पुरिमार्ध और एकासन प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है और सर्व उपधि में आयम्बिल प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1727. उपधि तीन प्रकार की होती है-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, जो क्रमश: चार, छह तथा चार प्रकार की होती है। १.लोगों से द्रव्य हासिल करने के लिए किया हआ कपट भेष। 2. बालकों के खेलने का गोल खिलौना। 3. चूर्णिकार के अनुसार 'आदि' शब्द से अजीव की आवाज, जैसे-अरहट्ट, गाड़ी तथा जूते आदि की आवाज को ग्रहण करना चाहिए। १.जीचू पृ. 17 / 4. चूर्णिकार जिनदास ने उपधि के उपग्रह -उपकार को प्रकट करते हुए कहा है कि शीत से पीड़ित होकर मुनि अग्नि आदि का सेवन न करे इसलिए मुनि वस्त्र रखे। पात्र के अभाव में संसक्त और परिशाटन आदि दोष न हों अतः मुनि पात्र रखे तथा वर्षाकाल में जल-जीवों की हिंसा से बचने हेतु कम्बल तथा लज्जा के लिए चोलपट्टक आदि धारण करे। १.दशजिच प. 221 संजमनिमित्तं वा वत्थस्स गहणं कीरड,मा तस्स अभावे अग्गिसेवणादिदोसा भविस्संति, पाताभावेऽवि संसत्तपरिसाडणादी दोसा भविस्संति, कंबलं वासकप्पादी तं उदगादिरक्खणा घेप्पति, लज्जानिमित्तं चोलपट्टको घेप्पति।