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________________ जीतकल्प सभाष्य 1650. जिस प्रकार धूम से आच्छादित चित्र सुशोभित नहीं होता, वैसे ही धूमदोष से युक्त मलिन चारित्र भी सुशोभित नहीं होता। 1651. जो साधु विरस, लवणरहित और दुर्गंधयुक्त आहार को द्वेषपूर्वक शोर मचाते हुए या निंदा करते हुए खाता है, वह सधूम दोष है। 1652. जलती हुई द्वेषाग्नि अप्रीति के धूम से चारित्र रूपी ईंधन को जब तक अंगार सदृश नहीं बना . डालती, तब तक वह जलती रहती है। 1653. रागभाव से किया गया भोजन स-अंगार तथा द्वेषभाव से किया जाने वाला भोजन सधूम कहलाता 1654. प्रवचन का यह उपदेश है कि तपस्वी मुनि ध्यान और अध्ययन के निमित्त विमत अंगाररागरहित तथा विगतधूम-द्वेष रहित होकर आहार करे। 1655. सधूम दोष का वर्णन कर दिया, अब मैं कारणद्वार का वर्णन करूंगा। प्रतिक्रमण करता हुआ मुनि चरम आवश्यक-कायोत्सर्ग में उसका चिंतन करे। 1656. साधु को कारण उपस्थित होने पर भोजन करना चाहिए। कारण है अथवा नहीं, यह चिन्तन करके यदि कारण है तो भोजन करना चाहिए। 1657. मुनि छह कारणों से आहार करता हुआ धर्म का आचरण करता है, छह ही कारणों से आहार का त्याग करता हुआ धर्माचरण करता है। 1658. आहार करने के छह कारण ये हैं-१. भूख की वेदना को उपशांत करने के लिए। 2. वैयावृत्त्य करने के लिए। 3. ईर्यापथ के शोधन हेतु। 4. प्रेक्षा आदि संयम के निमित्त / 5. प्राणप्रत्यय-प्राण-धारण के लिए तथा 6. धर्म-चिंतन-धर्म की अभिवृद्धि-ग्रंथ-परावर्तन आदि के लिए। 1659. क्षुधा के समान कोई वेदना नहीं होती अत: उसे शान्त करने के लिए भोजन करना चाहिए। भूखा वैयावृत्त्य करने में समर्थ नहीं होता अतः भोजन करना चाहिए। 1660. बुभुक्षित ईर्यापथ का शोधन नहीं कर सकता। पित्तजनित मूर्छा के कारण भूखे व्यक्ति की आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। आहार न करने से शरीर का बल क्षीण हो जाता है। वह प्रेक्षा आदि संयम करने में समर्थ नहीं रहता। 1661. आयु ,शरीर, प्राण आदि षड्विध प्राण भोजन के बिना नहीं चल सकते अतः प्राणों को धारण करने के लिए आहार करना चाहिए। 1662. बुभुक्षित व्यक्ति पूर्वरात्रि में धर्मध्यान करने में अथवा पंचविध स्वाध्याय करने में समर्थ नहीं होता (इसलिए आहार करना चाहिए)। 1663. इन छह कारणों से संयमी भिक्षु नियमतः आहार करता है तथा निम्न छह कारणों से वह आहार नहीं करता।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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