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________________ 432 जीतकल्प सभाष्य 1. बालक-आठ वर्ष की अवस्था से कम। 22. रुई पीजती हुई स्त्री। 2. वृद्ध-सत्तर वर्ष की अवस्था वाला। 23. कपास का मर्दन करती हुई स्त्री। 3. मत्त-मदिरापान किया हुआ। 24. सूत कातती हुई स्त्री। 4. उन्मत्त-भूत आदि से आविष्ट। 25. रुई की बार-बार छंटनी करती हुई स्त्री। 5. कम्पमान शरीर वाला। 26. षट्जीवनिकाय से युक्त हाथ वाली स्त्री। . 6. ज्वरित -ज्वर से पीड़ित। 27. भिक्षा देते समय उन्हीं छह जीवनिकायों को 7. अन्ध। भूमि पर डालने वाली स्त्री। 8. गलत्कुष्ठरोगी। 28. उन्हीं छह जीवनिकायों को कुचलती हुई स्त्री। 9. पादुका पहने हुए। 29. उन्हीं छह जीवनिकायों का शरीर के अन्य 10. दोनों हाथों में हथकड़ी पहने हुए। __ अवयवों से स्पर्श करती हुई स्त्री। 11. पैरों में बेड़ी पहने हुए। 30. षड्जीवनिकायों का हनन करती हुई स्त्री। 12. हाथ-पैर से विकल। 31. दही आदि से लिप्त हाथ वाली स्त्री। .. 13. त्रैराशिक-नपुंसक। 32. दही आदि से लिप्त पात्र से देने वाली स्त्री। 14. गर्भवती स्त्री। 33. बड़े बर्तन से भिक्षा देने वाली स्त्री। 15. बालवत्सा स्त्री-स्तन्योपजीवी शिशु वाली। 34. अनेक व्यक्तियों की वस्तु स्वयं देती हुई स्त्री। 16. भोजन करती हुई स्त्री। 35. चुराई हुई वस्तु देने वाली स्त्री। 17. दही आदि मथती हुई स्त्री। 36. प्राभृतिका की स्थापना करने वाली स्त्री। 18. चने आदि भंजती हुई स्त्री। 37. अपाययुक्त दात्री। 19. गेहूं आदि दलती हुई स्त्री। 38. अन्य साधु के लिए स्थापित वस्तु देने वाली स्त्री। 20. ऊखल में तंडुल आदि का कंडन करती हुई स्त्री 39. आभोग-ज्ञात होने पर भी अशुद्ध देने वाली स्त्री। 21. शिला पर तिल आदि पीसती हुई स्त्री। 40. अनाभोग-अज्ञान से अशुद्ध देने वाली स्त्री। 1. मतान्तर से साठ वर्ष वाला भी वृद्ध होता है। १.पिनिमटी प.१५८% वृद्ध : सप्ततिवर्षाणां मतान्तरापेक्षया षष्टिवर्षाणां वोपरिवर्ती। 2. टीकाकार मलयगिरि इस गाथा की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि नवमास वाली गर्भवती स्त्री के हाथ की भिक्षा स्थविरकल्पी मुनि परिहार करते हैं। इससे कम मास वाली गर्भवती के हाथ से स्थविरकल्पी भिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। वह बालक जो केवल मां के दूध पर ही आधृत है, उसका स्थविरकल्पी परिहार करते हैं। जो बालक बाह्य आहार भी ग्रहण करता है, उसकी मां से स्थविरकल्पी भिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। दूसरी त वह शरीर से भी बड़ा हो जाता है अत: उसे मार्जार आदि का भय भी नहीं रहता। जिनकल्पी साधु आपन्नसत्त्वा (गर्भवती) एवं बालवत्सा स्त्री का सर्वथा परिहार करते हैं। 1. पिनिमटी प. 164 / ३-६.भोजन करने बैठी हुई स्त्री ने यदि मुख में कवल नहीं डाला है तो उसके हाथ से भिक्षा कल्प्य है। भूनती हुई स्त्री यदि सचित्त गेहूं आदि को कड़ाही में डालकर निकाल चुकी है, दूसरी बार हाथ में गेहूं नहीं लिए हैं, इसी बीच यदि साधु आ जाता है तो उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण की जा सकती है। मूंग आदि दलती हुई स्त्री सचित्त मूंग आदि दलकर घट्टी को छोड़ चुकी है, इसी बीच साधु आए तो वह उठकर भिक्षा दे सकती है अथवा वह अचित्त मूंग दल रही है तो उसके हाथ से भिक्षा कल्पनीय है। कंडन करती हुई स्त्री यदि मुशल को ऊपर उठा चुकी है, उस मुशल में यदि कोई बीज नहीं लगा है, इसी बीच साधु के आने पर दोष रहित स्थान में उस मुशल को रखकर भिक्षा दे तो वह ग्राह्य है। १.पिनिमटी प. 164 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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