________________ अनुवाद-जी-३५ 421 कि हम अदृश्य होने का प्रयोग करेंगे। उन्होंने द्रव्यों का मेल करके आंखों में उस चूर्ण को आंज लिया। क्षुल्लकद्वय अदृश्य होकर राजा चन्द्रगुप्त के साथ भोजन करने लगे। ऊणोदरी के कारण चन्द्रगुप्त को दुर्बलता का अनुभव होने लगा। 1455. चाणक्य ने कारण पूछा। उसने ईंट का बारीक चूर्ण सब जगह फैला दिया और द्वार बंद करके चारों ओर धुंआ कर दिया। क्षुल्लकद्वय को देखकर चन्द्रगुप्त ने जुगुप्सा की। चाणक्य ने उनकी प्रशंसा की। समीप जाने पर आचार्य ने चाणक्य को उपालम्भ दिया। 1456. इस प्रकार वशीकरण आदि के प्रयोग में चूर्ण द्वारा दूसरों को वशीकृत करके पिण्ड का उत्पादन करना चूर्णपिण्ड कहलाता है। 1457. मंत्र और विद्या के संदर्भ में जो दोष बतलाए गए हैं, वे ही दोष वशीकरण आदि चूर्ण में जानने चाहिए। मुनि द्वारा कृत चूर्ण-प्रयोग एक अथवा अनेक मुनियों के प्रति प्रद्वेष उत्पन्न कर देता है तथा उनका नाश भी कर सकता है। 1458. चूर्णपिण्ड के बारे में वर्णन कर दिया, अब मैं योगपिण्ड के बारे में कहूंगा। योग अनेक प्रकार के होते हैं, उनका मैं वर्णन करूंगा। 1459. सौभाग्यकर और दुर्भाग्यकर योग दो-दो प्रकार के हैं -आहार्य तथा अनाहार्य। आहार्य के दो प्रकार हैं-आघर्ष तथा धूपवास / अनाहार्य है-पादप्रलेपन आदि। 1460. यहां योगपिण्ड का यह उदाहरण कहा। अब अनाहार्य पादलेप योग में आभीर जनपद का उदाहरण है, जहां तापसों ने जो किया, उसे तुम सुनो। 1461. कृष्णा और वेणा नदी के मध्य (ब्रह्म नामक) द्वीप में पांच सौ तापस रहते थे। पर्व दिनों में कलपति पाद-लेप करके कृष्णा नदी को पार करता था। 1462. पादुका को पहनकर वह कुलपति पानी के ऊपर चलकर नदी पार करके नगर में जाता था। आकृष्ट होकर लोग उसकी पूजा करते और कहते कि ये प्रत्यक्ष देव रूप हैं। 1463. श्रावकों के समक्ष लोग निंदा करते थे। श्रावकों ने यह बात वज्रस्वामी के मामा आचार्य समित को निवेदित की। 1464. आचार्य समित ने कहा-'वह मायापूर्वक पादलेप करके नदी पार करता है।' तुम लोग वहां जाओ और नदी पार करने के पश्चात् घर ले जाकर गर्म पानी से उनके पैर प्रक्षालित कर दो। 1. जो पानी आदि के साथ पीए जाते हैं, वे आहार्य योग हैं। इनके दो प्रकार है-आघर्ष अर्थात् पानी आदि के साथ घिसकर लिया जाने वाला द्रव्य तथा धूपवास-सुगंधित द्रव्यों की धूप। चूर्ण और वास दोनों ही क्षोद रूप में होते हैं। टीकाकार इनका भेद स्पष्ट करते हए कहते हैं कि सामान्य द्रव्यों से निष्पन्न शष्क अथवा आर्द्र क्षोद 'चूर्ण' कहलाता है। सुगन्धित द्रव्यों से निष्पन्न अत्यंत सूक्ष्म रूप में पीसा हुआ क्षोद 'वास' कहलाता है। १.पिनिमटी प.१४३। / 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2. कथा सं.५०।