________________ अनुवाद-जी-३५ 419 तुम्हारे जैी थी।' वह स्त्री मुनि के मुख में स्तन-प्रक्षेप करती है, जिससे दोनों के मध्य स्नेह-सम्बन्ध हो जाता है। वह अपनी विधवा पुत्रवधू का दान भी कर सकती है। 1429. इसी प्रकार पिता, भ्राता आदि का सम्बन्ध पूर्व संस्तव है तथा सास-ससुर आदि का सम्बन्ध पश्चात् संस्तव है। अधृतिपूर्वक अश्रुविमोचन तथा पृच्छा आदि स्त्री संस्तव की भांति जानना चाहिए। 1430. पश्चात्संस्तव के ये दोष हैं -सास अपनी विधवा पुत्री का दान कर सकती है। 'मेरी भार्या ऐसी ही थी' ऐसा कहने पर उसका पति मुनि का सद्यः घात कर सकता है अथवा स्त्री द्वारा भार्यावत् आचरण करने पर (चित्त-विक्षोभ से) मुनि का व्रत-भंग भी हो सकता है। 1431. यह सम्बन्धी संस्तव का वर्णन है, अब मैं वचन सम्बन्धी संस्तव का वर्णन करूंगा। दाता का भिक्षा से पूर्व या पश्चात् संस्तव करना वचन संस्तव है। 1432. दाता द्वारा भक्तपान देने से पहले ही जो मुनि उसके सद्-असद् गुणों की प्रशंसा करता है, वह वचन संबंधी पूर्वसंस्तव है। 1433. मुनि कहता है-'यह वह है, जिसके गुण दसों दिशाओं में निर्बन्ध घूमते हैं। इतने दिन तुम्हारे बारे में हम ऐसा सुनते थे, आज प्रत्यक्ष तुमको देखा है।' 1434. दाता द्वारा भक्तपान देने पर मुनि उसके सद्-असद् गुणों की प्रशंसा करता है, वह पश्चात्संस्तव कहलाता है। 1435. तुम्हारे गुण यथार्थ रूप में सर्वत्र प्रचलित हैं। तुम्हें देखकर मेरे चक्षु विमल हो गए। पहले मुझे तुम्हारे गुणों के बारे में शंका थी, अब तुम्हें देखकर मेरा मन निःशंक हो गया है। 1436. यहां भी भद्रक और प्रान्त दोष पूर्ववत् जानने चाहिए। (देखें गाथा 1430 का अनुवाद) संस्तव दोष का वर्णन कर दिया, अब मैं विद्या और मंत्र के बारे में कहूंगा। 1437. विद्या और मंत्र का प्रयोग करके आहार ग्रहण करने पर चतुर्लघु, जिसका तप रूप प्रायश्चित्त आयम्बिल प्राप्त होता है। अब मैं विद्या और मंत्र में क्या अंतर है, इसका वर्णन करूंगा। 1438. विद्या और मंत्र में यह अंतर है कि विद्या का सम्बन्ध स्त्री देवता तथा मंत्र पुरुष देवता से सम्बन्धित होता है अथवा जिसको सिद्ध किया जाए, वह विद्या तथा जो उच्चारण मात्र से सिद्ध हो जाए, वह मंत्र कहलाता है। 1439, 1440. विद्या में भिक्षु-उपासक का उदाहरण है। साधु एकत्रित होकर इस प्रकार संलाप करने लगे-'यह भिक्षु उपासक श्रावक अत्यन्त कंजूस है, यह साधुओं को कुछ नहीं देता है।' उनमें से एक साधु बोला-'यदि आप लोगों की इच्छा हो तो मैं विद्या प्रयोग के द्वारा उससे घृत, गुड़ तथा वस्त्र आदि दिला सकता हूं।" 1. गहिणी मुनि को कहती है कि आप मुझे अपनी मां ही समझ लें, इस प्रकार मातृत्व प्रकट करना स्तेन-प्रक्षेप है। 2. मंत्र और विद्या से सम्बन्धित दोष के विस्तार हेतु देखें पिण्डनियुक्ति की भूमिका पृ.१००। 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 47 /