________________ 416 जीतकल्प सभाष्य 1393. इन दोषों के कारण साधु को गृहस्थ की चिकित्सा नहीं करनी चाहिए। मैंने चिकित्सापिण्ड का वर्णन किया, अब क्रोधपिण्ड आदि के बारे में कहूंगा। 1394. क्रोधपिण्ड आदि के संक्षेप में क्रमशः ये उदाहरण हैं -1. हस्तकल्प नगर (घेवर), 2. गिरिपुष्पित नगर (सेवई), 3. राजगृह (मोदक), 4. चम्पा (केशरिया मोदक)।' 1395, 1396. हस्तकल्प नगर में मृतकभोज के अन्तर्गत क्षपक का दृष्टान्त है। कौशल देश के गिरिपुष्पित नगर के वनकोष्ठक चैत्य में साधु आपस में वार्तालाप करने लगे कि आज प्रातः साधुओं के लिए सेवई लेकर कौन आएगा? एक क्षुल्लक साधु बोला-'मैं सेवई लेकर आऊंगा।'३ 1397. साधुओं ने कहा-'सेवई घृत और गुड़ से संयुक्त होनी चाहिए।' क्षुल्लक ने कहा-'जैसी आज्ञा दोगे, वैसी सेवई लेकर आऊंगा।' सेवई के लिए उस क्षुल्लक ने श्वेताङ्गलि आदि के उदाहरण से सेवई देने वाले को समझाया। 1398. राजगृह नगर में धर्मरुचि नामक आचार्य के आषाढ़भूति नामक छोटा शिष्य था। एक बार वह भिक्षार्थ राज-नट के घर में प्रविष्ट हुआ। वहां उसे मोदक प्राप्त हुए। 1399. आचार्य, उपाध्याय, संघाटक साधु तथा स्वयं के लिए लड्ड प्राप्त करने के लिए उसने काने मुनि, कुष्ठ रोगी एवं कुब्ज आदि का रूप बनाकर बार-बार नट के घर में प्रवेश किया। 1400. ऊपर माले में बैठे हुए नट ने यह दृश्य देखा तो उस बुद्धिमान् नट ने अच्छी तरह सोचा कि नट इसके जैसा होना चाहिए अतः उपायपूर्वक इसे ग्रहण करना चाहिए। 1401. उसके दिमाग में एक उपाय आया कि मुनि को बुलाकर उन्हें बहुत मोदक दूंगा। उसने मुनि से कहा-'जब भी प्रयोजन हो, आप प्रतिदिन यहां आया करें।' 1402. नट ने अपनी दोनों कन्याओं को समझाया-'इनके साथ हास्य, क्रीड़ा, परिहास और स्पर्श आदि क्रियाएं करो, जिससे यह शीघ्र ही चारित्र से भ्रष्ट हो जाए।' 1403. यदि यह तुम दोनों का नाम ले या तुम्हारे प्रति आकृष्ट हो तो तुम कहना कि प्रव्रज्या का त्याग कर दो। दोनों कन्याओं ने वैसा ही किया, जिससे मुनि का मन क्षुभित हो गया। कन्याओं ने कहा-'इस 1. मूलाचार (गा. 454) में मान, माया और लोभ से सम्बन्धित नगरों के नामों में अंतर है। मान से सम्बन्धित वेणातट, माया से सम्बन्धित वाराणसी तथा लोभ से सम्बन्धित राशियान नगर का उल्लेख है। मूलाचार में खाद्य पदार्थ के नामों का निर्देश नहीं है। 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 43 / 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 44 / 4. साधु ने उसके समक्ष छह प्रकार के अधम पुरुषों के बारे में बताया, वे नाम इस प्रकार हैं -1. श्वेताङ्गलि 2. बकोड्डायक 3. किंकर 4. स्नायक 5. गृध्रइवरिंखी 6. हदज्ञ / इनके विस्तार हेतु देखें पिण्डनियुक्ति का परि. 2 कथा सं. 31-36 पृ. सं. 252-54 / 5. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2. कथा सं.४५।