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________________ 412 जीतकल्प सभाष्य / 1353. ब्राह्मण पुत्र द्वारा सही रूप से होम आदि क्रिया करते देखकर मुनि यह जान लेता है कि यह ब्राह्मण पुत्र है अथवा यह गुरुकुल में रहा हुआ है अथवा (मुनि उसके पिता से कहता है कि तुम्हारा पुत्र) आचार्य के गुणों को प्रकट करता है। 1354. (मुनि अपनी जाति प्रकट करने के लिए ब्राह्मण-पिता के सामने कहता है)-"तुम्हारे पुत्र ने होम आदि क्रिया सम्यक् या असम्यक् रूप से संपादित की है।" असम्यक् क्रिया के तीन रूप हैं-न्यून, अधिक तथा विपरीत। सम्यग् क्रिया के ये घटक हैं-समिधा-यज्ञ की लकड़ी, मंत्र, आहुति-स्थान, याग-यज्ञ, काल, घोष आदि। (यह सुनकर ब्राह्मण जान लेता है कि मुनि भी ब्राह्मण जाति का है, यह जाति से आजीवना है।) 1355. भिक्षार्थ गया मुनि प्रकट रूप में कहता है कि यह क्रिया ठीक की अथवा नहीं की। वहां भद्र या . दुष्ट व्यक्ति होने से ये दोष उत्पन्न होते हैं। 1356. भद्र गृहस्थ सोचता है कि यह हमारे पक्ष का है, यह भिक्षु है अतः इसको आधाकर्म आहार देना चाहिए। प्रान्त-दुष्ट गृहस्थ सोचता है कि यह भिक्षा के लिए चापलूसी कर रहा है। 1357, 1358. पिता का उग्र' आदि वंश कुल कहलाता है। इसको भी जाति की भांति जानना चाहिए। मल्ल की आवाज सुनकर युद्ध के मंडल' में प्रवेश करना। युद्ध प्रवेश में देवकुल-दर्शन', प्रतिमल्ल के आह्वान हेतु वैसी ही भाषा का प्रयोग, मंडप में दण्ड आदि क्रिया को देखकर जानना कि यह मल्ल है (यह गण के आधार पर उपजीवना है) यंत्र-पीड़न आदि कार्य कर्म कहलाते हैं तथा सिलाई आदि करना शिल्प कहलाता है। 1359. अथवा जो आचार्य के उपदेश से सीखा जाता है, वह शिल्प तथा जो स्वयं सीखा जाता है, वह कर्म कहलाता है। 1. उग्रकुल में प्रविष्ट पुत्र को आरक्षक कर्म में नियुक्त देखकर मुनि कहता है कि लगता है तुम्हारा पुत्र पदाति सेना के नियोजन में कुशल है। इस बात को सुनकर पिता जान लेता है कि यह साधु उग्र कुल में उत्पन्न है। यह सूचा के द्वारा स्वकुल का प्रकाशन है। जब वह स्पष्ट वचनों में अपने कुल को प्रकट करता है कि मैं उग्र या भोग कुल का हूं तो यह असूचा के द्वारा कुल को प्रकट करना है।' १.पिनिमटी प. 129 / 2. मण्डल-एक मल्ल के लिए जो लभ्य भूखण्ड है, वह मंडल कहलाता है। १.पिनिमटी प. 129; इहाकरवलके प्रविष्टस्यैकस्य मल्लस्य यल्लभ्यं भूखण्डं तन्मण्डलम्। ३.युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय चामुण्डा देवी की प्रतिमा को प्रणाम किया जाता था। १.पिनिमटी प. 130; देवकुलदर्शनं युद्धप्रवेशे चामुण्डाप्रतिमाप्रणमनम्। 4. कृषि आदि को कर्म तथा बुनाई, सिलाई आदि को शिल्प कहा जाता है अथवा अप्रीति, अरुचि पैदा करने वाला कर्म तथा प्रीति उत्पन्न करने वाला अर्थात् मन को आकृष्ट करने वाला शिल्प कहलाता है। आचार्यों ने मतान्तर प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अनाचार्य के द्वारा उपदिष्ट कर्म तथा आचार्य द्वारा उपदिष्ट शिल्प कहलाता है। १.पिनिमटी प. 129, निभा 4412 चू पृ. 412 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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