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________________ 410 जीतकल्प सभाष्य 1327. भिक्षा आदि के लिए जाता हुआ मुनि जननी आदि का संदेश ले जाता है कि तुम्हारी माता ने अथवा पिता ने ऐसा कहा है। (यह भी प्रकट दूतीत्व है।) 1328-30. छन्न दूती के दो प्रकार हैं-लोकोत्तर और उभयपक्ष / लोकोत्तर छन्न दूतीत्व में संघाटक के साधु से शंकित होता हुआ साधु छन्न वचनों में बोलता है। वह छन्न दूतीत्व कैसे होता है? इसका उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं कि शय्यातरी को संदेश देने के लिए साधु उसके पास गया। साथ वाले साधु के विश्वास के लिए मुनि प्रकट रूप में यह कहता है कि हमारे लिए दूतीत्व कल्पनीय नहीं है। तुम्हारी पुत्री अकोविद है, तभी उसने मुझे कहा है कि मेरी मां को ऐसा कह देना। 1331. मां भी कहती है कि इस विषय में उसे जानकारी नहीं है अतः मैं उसे मना कर दूंगी। यह लोकोत्तर प्रच्छन्न दूतीत्व है। अब मैं उभयच्छन्न दूतीत्व को कहूंगा। 1332, 1333. जामाता के तीर्थयात्रा से आने पर पुत्री ने बिलाव को पकाया। मुनि के आने पर पुत्री ने उभयच्छन्न दूतीत्व करते हुए कहा कि मेरी मां को ऐसा कहना कि चिन्तित कार्य उसी रूप में सम्पादित कर दिया है। इस प्रकार के दूतीत्व में न संघाटक जानता है और न पार्श्ववर्ती व्यक्ति कुछ भी जानता है। 1334. यह स्वग्राम उभयच्छन्न दतीत्व है। इसी प्रकार परग्राम विषयक दतीत्व को जानना चाहिए। फिर दूती के दो भेद क्यों किए? 1335. दो ग्रामों के बीच वैर था। परग्राम (निकटवर्ती ग्राम) में शय्यातरी की बेटी रहती थी। ग्राम में चिन्तन हुआ कि परग्राम का हनन करेंगे। 1336, 1337. पिता मुनि शय्यातरी की पुत्री के यहां भिक्षार्थ गया। वह शय्यातरी अपने पिता मुनि को कहती है कि मेरी बेटी को ऐसा कह देना कि पड़ोसी गांव आक्रमण करने वाला है अतः प्रमाद मत करना। उसके कहने पर दूसरे गांव में पिता मुनि ने वैसा ही संदेश दे दिया। उसने भी गांववासियों को यह सूचना दे दी। 1338. सूचना मिलने पर बेटी के गांव वाले एक पार्श्व में स्थित हो गए। दूसरे गांव की सेना का आक्रमण होने पर दोनों गांव के बीच युद्ध होने लगा। युद्ध में शय्यातरी का पति, पुत्र और दामाद मारे गए। 1339. लोग कहने लगे कि यह संदेश किसने दिया? शय्यातरी बोली-'जामाता, पुत्र और पति को मारने वाले मेरे पिता ने ऐसा कहा था।' 1340. इन दोषों के कारण दूतीत्व करना मुनि के लिए कल्पनीय नहीं है। दूतीपिण्ड ग्रहण करने पर चतुर्लघु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है, जिसका तप रूप प्रायश्चित्त आयम्बिल होता है। 1. लोकोत्तर में पास वाले साधु को भी ज्ञात होता है। उभयपक्ष में वार्ता साधु और गृहस्थ-दोनों से छन्न रहती है। 1. पिनिमटी प. 126 / 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 40 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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