________________ अनुवाद-जी-३५ 409 1319,1320. उत्पादना के सोलह दोष हैं१. धात्री 9. माया 2. दूती 10. लोभ 3. निमित्त 11. पूर्व संस्तव, पश्चात् संस्तव 4. आजीविका 12. विद्या 5. वनीपक 13. मंत्र 6. चिकित्सा 14. चूर्ण 7. क्रोध 15. योग 8. मान 16. मूलकर्म 1321. धात्री शब्द की व्युत्पत्ति * जो बालक को धारण करती है, वह धात्री है। * जो बालक का पोषण करती है, वह धात्री है। * बालक जिसको पीते हैं (जिसका स्तनपान करते हैं), वह धात्री है। प्राचीन काल में अपने ऐश्वर्य के अनुसार धनाढ्य व्यक्ति क्षीर आदि पांच प्रकार की धात्रियों की नियुक्ति करते थे। 1322. धात्री के पांच प्रकार हैं 1. क्षीरधात्री - स्तनपान कराने वाली। 2. मज्जनधात्री - स्नान कराने वाली। 3. मंडनधात्री - बालक का मंडन-विभूषा करने वाली। 4. क्रीड़नधात्री -- बालक को क्रीड़ा कराने वाली। 5. अंकधात्री - बालक को गोद में रखने वाली। इनमें से किसी एक धात्रीत्व का प्रयोग करना धात्रीपिण्ड है। 1323. धात्रीत्व दो प्रकार का होता है-स्वयं करना, दूसरों को नियुक्त करना। बालक आदि को धाय की भांति क्रीड़ा कराना धात्रीपिंड है। . 1324. पंचविध धात्रीपिंड ग्रहण करने पर चतुर्लघु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है, जिसका तप रूप प्रायश्चित्त आयम्बिल है। अब मैं दूतीपिंड' को कहूंगा। 1325. दूती के दो प्रकार हैं-स्वग्राम और परग्राम। इनके भी दो-दो भेद हैं -प्रकट और छन्न (गुप्त)। 1326. नि:संकोच रूप से शय्यातर की मां या बेटी को अन्यग्राम में संदेश देना प्रकट दूतीत्व है। 1. दूतीपिण्ड के विस्तार हेतु देखें पिण्डनियुक्ति की भूमिका पृ. 92 /