________________ 408 जीतकल्प सभाष्य 1309, 1310.* प्रथम भंग में शुष्क में शुष्क द्रव्य गिर जाने पर उसको सरलता से निकाल कर दूर किया जा सकता है। * दूसरे भंग में शुष्क द्रव्य में तीमनादि (विशोधिकोटिक दोष वाला) मिल गया, तब उसमें काञ्जी आदि द्रव मिलाकर पात्र को टेढ़ा कर पात्र मुख पर हाथ देकर उसमें से द्रव अलग किया जा सकता है। * तीसरे भंग में शुद्ध आई तीमन आदि में अशुद्ध शुष्क द्रव्य गिर गया तो उसमें हाथ डालकर जितना निकालना संभव हो सके, उतना निकाल दिया जाता है फिर तीमन आदि कल्पनीय होता है। * चतुर्थ भंग में शुद्ध आर्द्र द्रव्य में अशुद्ध आई द्रव्य मिश्रित हो जाने पर, वह द्रव्य यदि दुर्लभ हो तो उतनी ही मात्रा में अशुद्ध द्रव्य निकालकर शेष का परिभोग करना कल्पनीय है। 1311. इस प्रकार अशठ होकर परित्याग करने वाला साधु जिन स्थानों में शुद्ध होता है, मायावी उन स्थानों . से शुद्ध नहीं होता अत: मुनि को अशठ होना चाहिए। 1312. इस प्रकार गवेषणा में उद्गम द्वार का मैंने संक्षेप में वर्णन किया, अब मैं उत्पादना के दोषों के बारे में संक्षेप में कहूंगा। 1313. उद्गम के सोलह दोष गृहस्थ से समुत्थित जानने चाहिए तथा उत्पादन के दोष साधु से समुत्थित जानने चाहिए। 1314. उत्पादना के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्रव्य उत्पादना सचित्त, अचित्त और मिश्र आदि तीन प्रकार की होती है। सचित्त उत्पादना द्विपद (चतुष्पद, अपद) आदि तीन प्रकार की होती 1315. औपयाचितक रूप से केश-रोम युक्त लोमश पुरुष, घोड़े या बीज के द्वारा अश्व और पुत्र एवं वृक्ष-वल्लि आदि का उत्पादन सचित्त द्रव्य उत्पादना है।' 1316. कनक, रजत आदि यथेष्ट धातुओं से इच्छानुरूप आभूषण आदि की उत्पत्ति अचित्तद्रव्यउत्पादना है। दास, दासी आदि को वेतन आदि देकर आत्मीय बनाना मिश्रद्रव्यउत्पादना है। 1317. भावउत्पादना के दो प्रकार हैं-प्रशस्तभावउत्पादना तथा अप्रशस्तभावउत्पादना। क्रोध आदि से युक्त धात्रीत्व आदि की उत्पादना अप्रशस्तभावउत्पादना है तथा ज्ञान आदि की उत्पादना प्रशस्तभावउत्पादना 1318. यहां अप्रशस्त भाव उत्पादना का अधिकार है, वह धात्री आदि सोलह प्रकार की है। 1. किसी व्यक्ति के किसी भी उपाय से पुत्र न होने पर देवता की मनौती--औपयाचितक रूप से ऋतुकाल में लोमश पुरुष द्वारा संयोग कराकर पुत्र आदि की उत्पत्ति करना सचित्त द्रव्य उत्पादना है। इसी प्रकार भाड़ा देकर अन्य व्यक्ति के घोड़े का अपनी घोड़ी से संयोग कराकर घोड़ा आदि पैदा करना तथा बीजारोपण करके पानी के सिंचन से वृक्ष आदि पैदा करना सचित्त द्रव्य उत्पादना है। १.पिनिमटी प. 120 /