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________________ अनुवाद-जी-३५ 397 1200. उद्दिष्ट के उद्देश, समुद्देश आदि चारों भेदों में लघुमास प्रायश्चित्त, कृत के चारों भेदों में गुरुमास, कर्म के प्रथम भेद में चतुर्लघु तथा अंतिम तीन भेदों में चतुर्गुरु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1201. मैं लघुमास, गुरुमास तथा चतुर्गुरु-इन तीनों का तप की दृष्टि से प्रायश्चित्त-कथन कर रहा हूं। 1202. लघुमास में पुरिमार्ध, गुरुमास में एकासन, चतुर्लघु में आयम्बिल तथा चतुर्गुरु में उपवास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। 1203, 1204. पूतिकर्म' दो प्रकार का होता है-द्रव्यपूति और भावपूति। द्रव्यपूति में छगण धार्मिक का उदाहरण है। भावपूति दो प्रकार की जाननी चाहिए -सूक्ष्म और बादर। बादरपूति दोष पुनः दो प्रकार का होता है-उपकरणपूति और भक्तपानपूति। 1205. (आधाकर्मिक के अवयव) ईंधन, गंध और धूम-ये सूक्ष्म हैं, इनसे स्पृष्ट होने पर पूति दोष नहीं होता। चूल्हा और स्थाली यदि आधाकर्मिक हैं तो वह उपकरणपूति होता है। 1206. उपकरणपूति युक्त आहार ग्रहण करने पर लघुमास (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। शाक, लवण, हींग से संक्रामण-आधाकर्म से संस्पृष्ट स्थाली आदि में शुद्ध अशन आदि रखना या पकाना, भक्तपानपूति है। 1207. भक्तपानपूति ग्रहण करने पर गुरुमास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है, जिसका तप रूप प्रायश्चित्त एकासन होता है। अब मैं उपकरणपूति और भक्तपानपूति का लक्षण कहूंगा। 1208. सीझते हुए अन्न के लिए चुल्ली तथा दीयमान पक्व भक्तपान के लिए कुड़छी आदि उपकारी होते हैं इसलिए ये उपकरण कहलाते हैं। चुल्ली, स्थाली, दर्वी, बड़ी कुड़छी-ये सारे उपकरण हैं। 1. निशीथ चूर्णिकार ने पूति और कर्म की अलग-अलग व्याख्या की है। पूति का अर्थ है-कुथित तथा कर्म का अर्थ है-आधाकर्म। सिद्धान्त में आधाकर्म को अग्राह्य होने के कारण पूति कहा है। आधाकर्म से संसृष्ट को भी पूति .' कहा जाता है तथा पूति से संसृष्ट को भी पूति कहा जाता है। पूतिदोष के विस्तार हेतु देखें पिण्डनियुक्ति की भूमिका पृ. 67-70 / १.निभा 804 चू पृ. 64 / 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 38 / 3. निशीथभाष्य में विस्तार से पूतिदोष का वर्णन किया गया है। वहां बादरपूति के तीन भेद हैं-१. आहार 2. उपधि और 3. वसति। विकल्प से आहारपूति के दो भेद किए हैं -1. उपकरणपूति और आहारपूति। उपधिपूति के वस्त्र और पात्र दो भेद किए गए हैं तथा वसतिपूति के मूलगुण और उत्तरगुण के अन्तर्गत सात-सात भेद किए - हैं। मूलाचार में पूति के पांच प्रकार हैं-१.चुल्ली 2. उक्खलि (ऊखल) 3. दर्वी-चम्मच 4. भाजन 5. गंध। १.निभा 806,807 / २.निभा 811 / 3. मूलाचार 428 / 4. पिण्डनियुक्ति में सूक्ष्मपूति का विस्तार से वर्णन किया गया है। देखें पिनि गा. 115-117/3 का अनुवाद और 'उनके टिप्पण।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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