________________ 392 जीतकल्प सभाष्य तीसरी बार साधु के लिए धान्य को कंडित किया, इसे चतुर्भंगी का तीसरा विकल्प जानना चाहिए। 1163. गृहस्थ ने अपने लिए दो बार धान्य को कंडित किया तथा तीसरी बार साफ करके गृहस्थ ने अपने लिए पकाया, यह चतुर्भंगी का चौथा विकल्प है। इन चार भंगों में कितने भंग कल्प्य हैं और कितने अकल्प्य हैं? 1164. प्रथम और तृतीय भंग में आहार ग्रहण अकल्प्य है। दूसरे और चौथे विकल्प में कल्प्य है।' इसी . प्रकार पान, खादिम और स्वादिम के बारे में जानना चाहिए। 1165. साधु के निमित्त धान्य रांधा गया, जब तक वह प्रासुक नहीं हुआ, तब तक कृत है। प्रासुक होने के / बाद निष्ठित कहलाता है। पानक में चावल धोना आदि कृत तथा उसे रांधना निष्ठित है। 1166. फल आदि को टुकड़ों में काटकर बघार देने पर, जब तक वह प्रासुक न हो, तब तक कृत तथा . प्रासुक होने पर उसे निष्ठित जानना चाहिए। इसी प्रकार स्वादिम में आर्द्रक आदि को जानना चाहिए। 1167. यहां अशन, पान आदि में सर्वत्र यथाक्रम से चतुर्भगी करनी चाहिए। सम्पूर्ण रूप से विधिपरिहरणा और अविधि-परिहरणा जाननी चाहिए। 1168. कुछ आचार्य फल-पुष्प आदि के प्रयोजन से अथवा अन्य किसी प्रयोजन से साधु के लिए बोए गए वृक्ष की छाया का वर्जन करते हैं लेकिन यह उचित नहीं है। उस वृक्ष का फल दूसरे भंग में लेना कल्पनीय है अर्थात् साधु के लिए कृत तथा गृहस्थ के लिए निष्ठित रूप में। 1169. वृक्ष की छाया आधाकर्मिकी नहीं होती क्योंकि छाया परप्रत्ययिका अर्थात् सूर्यहेतुकी होती है, वृक्षमात्रहेतुकी नहीं होती, जैसे मालाकार वृक्ष को बढ़ाता है, वैसे छाया उसके द्वारा बढ़ाई नहीं जाती। (जो उसे आधाकर्मिकी मानकर उसके नीचे बैठने का निषेध करते हैं, उनके अनुसार तो) मेघाच्छन्न आकाश से वृक्ष की छाया लुप्त हो जाने पर उस वृक्ष के नीचे बैठना भी कल्पनीय हो जाएगा। 1. टीकाकार मलयगिरि ने इस प्रसंग में वृद्ध-सम्प्रदाय का उल्लेख करते हुए कहा है कि यदि चावलों को एक बार या दो बार साधुओं के लिए कंडित किया और तीसरी बार गृहस्थ ने अपने लिए कंडित किया और पकाया तो वे तण्डुल साधु के लिए कल्पनीय हैं। इस संदर्भ में अन्य परम्पराओं का भी उल्लेख मिलता है। पान, खादिम और स्वादिम आदि के बारे में भी कृत और निष्ठित को समझना चाहिए। साधु के लिए कूप आदि का खनन किया, उसमें से जल निकाला तथा उसे प्रासुक किया। जब तक वह पानी प्रासुक नहीं होता, तब तक वह कृत कहलाता है तथा प्रासुक होने के बाद निष्ठित कहलाता है। इसी प्रकार खादिम में ककड़ी आदि का वपन करके उसे निष्पन्न किया फिर उसे टुकड़ों में काटा, जब तक वे टुकड़े प्रासुक नहीं हुए, तब तक कृत तथा प्रासुक होने के बाद निष्ठित कहलाते हैं। १.पिनिमटी प.६५,६६। २.टीकाकार के अनसार वक्ष के नीचे का कछ भाग सचित्त कणों से संपृक्त होता है अत: वह पति होता है। उस स्थान पर बैठना कल्पनीय नहीं है लेकिन वृक्ष की छाया आधाकर्मिकी नहीं होती। १.पिनिमटी प.६६।