________________ अनुवाद-जी-३५ - 391 अशन के उदाहरण की भांति कोई भी साधु किसी गांव में नहीं रुकता था। श्रावकों ने साधुओं से इसका कारण पूछा तो साधुओं ने कहा कि यहां का पानी लवणयुक्त है। 1152. तब एक श्रावक ने मीठे पानी का कूप खुदवाया। उसने उस कूप को तब तक ढ़ककर रखा, जब तक साधु वहां नहीं आ गए। 1153. यहां पानक के उदाहरण में आधाकर्म कूप का ज्ञान, उसका वर्जन आदि अशन के उदाहरण के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार यथाक्रम से खादिम और स्वादिम के बारे में भी जानना चाहिए। 1154. ककड़ी, आम, दाडिम-अनार, द्राक्षा और बिजौरा आदि पदार्थ खादिम के अन्तर्गत हैं तथा त्रिकटुक आदि स्वादिम कहलाते हैं। 1155. आधाकर्म क्या है? यह संक्षेप में वर्णित हो गया। अब क्रमशः परपक्ष और स्वपक्ष द्वार का प्रसंग 1156, 1157. गृहस्थ परपक्ष तथा श्रमण और श्रमणी स्वपक्ष हैं। यहां कृत और निष्ठित के आधार पर चतुर्भंगी कहूंगा * साधु के लिए कृत, साधु के लिए निष्ठित। * साधु के लिए कृत, गृहस्थ के लिए निष्ठित। ..* गृहस्थ के लिए कृत, साधु के लिए निष्ठित / * गृहस्थ के लिए कृत, गृहस्थ के लिए निष्ठित। 1158. शालि आदि को बोना, काटना, मर्दन करना तथा एक बार या दो बार कंडित-साफ करना कृत कहलाता है तथा उनको तीन बार कंडित करके रांधना निष्ठित कहलाता है, यह दुगुना आधाकर्म है। 1159. कृत और निष्ठित का यह लक्षण संक्षेप में जानना चाहिए। अथवा जो प्रासुक किया जाता है अथवा रांधा जाता है, वह निष्ठित तथा शेष सारा कृत कहलाता है। 1160. श्रमण के लिए बोना तथा दो बार कंडित करना कृत है तथा साधु के लिए शालि धान्य को तीन बार कड़ित करके रांधना निष्ठित कहलाता है, यह चतुर्भगी के प्रथम भंग की व्याख्या है। 1161. श्रमण के लिए दो बार कंडित करने पर शीघ्र ही किसी अन्य कारण के उपस्थित होने पर गृहस्थ के लिए तीसरी बार कंडित करके उसको निष्ठित करना-यह चतुर्भंगी का दूसरा भंग है। 1162. दो बार गृहस्थ ने अपने लिए धान्य को साफ किया, इसी बीच प्राघूर्णक साधु के आने पर उसने 1. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 34 / 2. त्रिकटुक-सौंठ, पीपल और कालीमिर्च को त्रिकटुक कहते हैं। / . दुगुना आधाकर्म को व्याख्यायित करते हुए पिण्डनियुक्ति के टीकाकार मलयगिरि कहते हैं कि एक आधाकर्म तो कृत तंडुल रूप तथा दूसरा पाक-क्रियारूप होने से यह दुगुना आधाकर्म है। १.पिनि 80 मटी प.६५,६६।