________________ 390 जीतकल्प सभाष्य 1143. इस प्रकार अभिग्रह और भावना तक सब भंगों की बुद्धि द्वारा यथाक्रम से चतुर्भंगी की योजना करनी चाहिए। 1144. प्रत्येकबुद्ध, निह्नव, उपासक, केवली और शेष साधु आदि के साथ क्षायिक भावों के अनुसार (दर्शन, ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना के आधार पर ) विकल्पों की योजना करनी चाहिए। ... 1145. जहां तीसरा भंग-प्रवचन से साधर्मिक तथा लिंग से भी साधर्मिक, वहां साधु को आहार नहीं कल्पता। (इस विकल्प में प्रत्येकबुद्ध और तीर्थंकरों को छोड़कर शेष मुनि आ जाते हैं।) शेष भंगत्रय में भजना है-क्वचित् कल्पता है, क्वचित् नहीं। तीर्थंकर, निह्नव और उपासक आदि के निमित्त से किया हुआ आहार कल्पता है। शेष साधुओं के लिए किया हुआ अन्न-पानी आदि नहीं कल्पता। .. 1146. आधाकर्म आहार किसके लिए? यह यथाक्रम से उद्दिष्ट हो गया कि इस प्रकार के साधर्मिकों के लिए आधाकर्म आहार कल्प्य नहीं है। आधाकर्म क्या है? (इसका उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं) कि अशन, पान आदि आहार-पानी का निर्माण आधाकर्म है। 1147. अशन-शालि आदि, पान-अवट (कूप आदि) से निकला पानी, खादिम-फल आदि और / स्वादिम-सोंठ आदि हैं। इनमें कृत और निष्ठित के आधार पर शुद्ध और अशुद्ध चार भंग होते हैं। 1148, 1149. गांव में कोद्रव और रालक दो प्रकार के धान्यों की प्रचुरता थी। साधुओं के स्वाध्याय के योग्य रमणीय वसति थी। क्षेत्र-प्रतिलेखना हेतु साधुओं का आगमन हुआ। श्रावकों ने पूछा- क्या यह क्षेत्र आचार्य के चातुर्मास योग्य है?' साधुओं ने ऋजुता से सब कुछ कहा -' क्षेत्र गण के योग्य है लेकिन गुरु के चातुर्मास योग्य नहीं है क्योंकि यहां आचार्य के योग्य शाल्योदन नहीं हैं।' शालि के लिए श्रावक ने शालिबीजों का वपन किया और स्वजनों के घरों में शालि को बंटवा दिया।' 1150, 1151. समय बीतने पर वे या कुछ अन्य मुनि उस गांव में आए। भिक्षार्थ जाने पर उन्होंने - पूछा-'यह क्या है?' लोगों ने सरलता से यथार्थ बात बता दी। आधाकर्मी आहार ज्ञात होने पर उन्होंने उस आहार का वर्जन कर दिया। अथवा अन्य मुनियों को कहा कि यह अशन आधाकर्मिक है। (शिष्य प्रश्न पूछता है कि) अशन आधाकर्मी होता है लेकिन पानक आधाकर्मी कैसे होगा? (आचार्य उत्तर देते हैं) 1. पिण्डनियुक्ति में तीर्थंकर, निह्नव और केवली-इन शब्दों का ही प्रयोग हुआ है। गाथा की व्याख्या में टीकाकार मलयगिरि ने एक प्रश्न उपस्थित किया है कि तीर्थंकर और केवली-इन शब्दों का प्रयोग क्यों किया गया? इसका स्पष्टीकरण करते हुए स्वयं टीकाकार कहते हैं कि केवली का कैवल्य सबको ज्ञात हो, यह आवश्यक नहीं है इसलिए तीर्थंकर और केवली दोनों को अलग-अलग ग्रहण किया है। तीर्थंकर' शब्द के उपलक्षण से प्रत्येकबुद्ध का ग्रहण भी हो जाता है। जीतकल्पभाष्य में तीर्थंकर के साथ निह्नव और उपासक शब्द का प्रयोग हुआ है। 'आदि' शब्द से संभवतः प्रत्येकबुद्ध और केवली का ग्रहण हो सकता है। १.पिनिमटी प.६२। 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 33 /