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________________ अनुवाद-जी-३५ 389 अध:कर्म है।) वह प्राण और भूतों के हनन के साथ आत्मा के चारित्र आदि गुणों का नाश करता है इसलिए इसका एक नाम आत्मघ्न है। आधाकर्म लेने वाला परकर्म-पाचक आदि के पापकर्म को स्वयं आत्मसात् करता है अतः इसका एक नाम आत्मकर्म है। 1138. एकार्थक द्वार कहा गया है, अब आधाकर्म भोजन किसके लिए निष्पन्न होता है, यह बताया जा रहा है। आधाकर्म साधर्मिक के लिए कृत होता है। साधर्मिक बारह प्रकार के होते हैं। 1139. (निक्षेप की दृष्टि से) साधर्मिक' बारह प्रकार के होते हैं१. नाम साधर्मिक 7. लिंग साधर्मिक 2. स्थापना साधर्मिक 8. दर्शन साधर्मिक 3. द्रव्य साधर्मिक 9. ज्ञान साधर्मिक 4. क्षेत्र साधर्मिक 10. चारित्र साधर्मिक 5. काल साधर्मिक 11. अभिग्रह साधर्मिक 6. प्रवचन साधर्मिक 12. भावना साधर्मिक 1140. नाम से किसी का नाम साधर्मिक है, वह नाम साधर्मिक कहलाता है। स्थापना से लेकर काल साधर्मिक तक की व्याख्या स्वयं जान लेनी चाहिए। प्रवचन और लिंग से साधर्मिक की चतुर्भगी होती है। 1141. प्रवचन छोड़ देता है लेकिन लिंग नहीं, इस प्रकार दर्शन साधर्मिक से लेकर भावना साधर्मिक तक सबकी यथाक्रम से चतुर्भंगी करनी चाहिए। 1142. इसी प्रकार लिंग के साथ भी दर्शन आदि की चतुर्भगी होती है। ऊपर के तीन भंगों में भजना है लेकिन अंतिम भंग का वर्जन करना चाहिए। १.निशीथ भाष्य में तीन प्रकार के साधर्मिकों का उल्लेख है-१.लिंग साधर्मिक 2. प्रवचन साधर्मिक 3. लिंगप्रवचन साधर्मिक। वहां वैकल्पिक रूप से साधर्मिक के तीन-तीन भेद और किए हैं-१.साध 2. पार्श्वस्थ 3. श्रावका दूसरा विकल्प है-१. श्रमण 2. श्रमणी 3. श्रावक।' १.निभा 336 चू. पृ. 117 / २.टीकाकार मलयगिरि ने पूर्वाचार्य कृत व्याख्या का उल्लेख करते हुए कहा है कि प्रवचन, लिंग आदि सप्तक के द्विसंयोग से 21 भेद होते हैं। प्रवचन के लिंग यावत् भावना तक छह भंग होते हैं। लिंग के दर्शन आदि के साथ पांच, दर्शन के ज्ञान आदि के साथ चार, ज्ञान के चारित्र आदि के साथ तीन, चारित्र का अभिग्रह और भावना के साथ दो तथा अभिग्रह का भावना के साथ एक-इस प्रकार सब मिलकर इक्कीस भेद होते हैं। इन इक्कीस भेदों में प्रत्येक की एक-एक चतुर्भगी होती है। १.पिनिमटी प. 55 / ३.साधर्मिक के विस्तार हेतु देखें पिण्डनियुक्ति 73/1-22 गाथाओं का अनुवाद एवं उनके टिप्पण। ६.१.लिंग से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं। 2. प्रवचन से साधर्मिक, लिंग से नहीं। 3. प्रवचन से साधर्मिक, लिंग से भी साधर्मिक। 4. न लिंग से साधर्मिक.न प्रवचन से साधर्मिक।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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