________________ अनुवाद-जी-३५ 383 1085, 1086. दिन में गृहीत रात्रि में भुक्त, रात्रि में गृहीत दिन में भोग, रात्रि में ग्रहण रात्रि में भोग-रात्रि भोजन से सम्बन्धित इन त्रिविध भंगों की शोधि तेले के तप से होती है। रात्रिभोजन का वर्णन सम्पन्न हो गया। 35. कर्म औद्देशिक के चरमत्रिक, पाषंडमिश्रजात, साधुमिश्रजात, स्वगृहमिश्रजात, बादर प्राभृतिका, प्रत्यपाय सहित आहृत आहार और लोभपिण्ड। (इन सबकी शोधि उपवास प्रायश्चित्त' से होती 1087. जीतकल्पसूत्र की 35 वीं गाथा का अर्थ रहने दो। उद्गम आदि आठों के लक्षण, प्रायश्चित्तप्राप्ति तथा उसका तप रूप में प्रायश्चित्त-दान-इन सबको मैं विस्तार से कहूंगा। 1088. उद्गम के सोलह, उत्पादना के सोलह, एषणा के दस तथा (परिभोगैषणा के) संयोजना आदि पांच दोष-ये एषणा के दोष हैं। 1089. उद्गम नाम, स्थापना आदि चार प्रकार का है। उसमें द्रव्य उद्गम ये हैं-ज्योतिष्-सूर्य, चन्द्र आदि, तृण, औषधि-शालि आदि धान, मेघ, ऋण और कर (राजदेय)। 1090. अथवा लड्डक आदि उद्गम होता है। भाव उद्गम तीन प्रकार का होता है-दर्शन, ज्ञान और चारित्र। यहां चारित्र उद्गम का अधिकार है। 1091. यहां चारित्र उद्गम का अधिकार किस कारण से कहा गया है? (आचार्य उत्तर देते हैं) शिष्य! चारित्र में होने वाले गुणों को सुनो। 1092. दर्शन और ज्ञान से चारित्र का उद्गम होता है। इन दोनों की शुद्धि होने पर चारित्र शुद्ध होता है। 1. जीतकल्प के प्रणेता आचार्य भद्रबाहु ने एक प्रायश्चित्त से सम्बन्धित सभी दोषों का एक साथ समाहार करके वर्णन किया है, जैसे उपवास प्रायश्चित्त से सम्बन्धित सभी दोषों का एक साथ उल्लेख कर दिया है। २.भाष्यकार ने उद्गम, उत्पादन तथा एषणा के दोषों का वर्णन पिंडनियुक्ति के आधार पर किया है। उन्होंने कहीं पाठभेद, कहीं विस्तार तो कहीं संक्षिप्त वर्णन भी किया है। 3. पिण्डनियुक्ति में उद्गम, उत्पादना, एषणा, संयोजना, प्रमाण, इंगाल, धूम और आहार के कारण-ये आठ अर्थाधिकार हैं। भाष्यकार का लक्ष्य इन आठों की विस्तार से व्याख्या करने का है। १.पिनि 1 पिंडे उग्गम-उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे या इंगाल-धम-कारण, अविहा पिंडनिज्जत्ती। 4. ज्योतिष् तथा मेघों का आकाश से, तण, शालि आदि का पृथ्वी से, ऋण का व्यापार से, करों का नपति नियुक्त पुरुषों से उद्गम होता है। समय के अनुसार ज्योतिश्चक्र के बीच सूर्य का प्रभात में तथा शेष चन्द्र आदि का अन्यान्य समयों में, तृणों का प्रायः श्रावण आदि मास में तथा ज्योतिष् चक्र और मेघों का आकाश में देर रात्रि तक विस्तृत होने से, तृण, शालि आदि का भूमि को फोड़कर ऊपर आने से, ऋण का ब्याज आदि से एवं करों का प्रतिवर्ष संकलन करने से उद्गम होता है। १.पिनिमटी प.३३।