________________ 382 जीतकल्प सभाष्य 33. मैथुन वर्जित मृषादि अव्रत द्रव्य, क्षेत्र आदि के भेद से चार-चार प्रकार का होता है। ये सभी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट-तीन-तीन प्रकार के होते हैं। जघन्य सम्बन्धी अतिक्रमण होने पर एकासन, मध्यम में आयम्बिल तथा उत्कृष्ट में उपवास प्रायश्चित्त जानना चाहिए। 1075. मृषावाद, अदत्तादान और परिग्रह-ये मृषादि अव्रत कहलाते हैं। इसमें मैथुन का वर्जन जानना. चाहिए। 1076. मृषावाद के चार भेद हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। द्रव्य मृषावाद तीन प्रकार का होता हैजघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट / 1077. इसी प्रकार क्षेत्रमृषा, कालमृषा और भावमृषा के भी तीन-तीन भेद होते हैं-१. जघन्य 2. मध्यम और 3. उत्कृष्ट। इनको भेद सहित भिन्न-भिन्न जानना चाहिए। 1078. इसी प्रकार अदत्त और परिग्रह आदि के भी द्रव्य आदि चार-चार भेद होते हैं। पुनः प्रत्येक के तीन-तीन भेद होते हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। 1079. मृषा आदि के द्रव्य आदि चारों भेदों के तीन-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद होते हैं। अब मैं द्रव्य आदि की क्रमशः शोधि कहूंगा। 1080. द्रव्यमृषा के जघन्य अतिचार में एकासन, मध्यम अतिचार में आयम्बिल तथा उत्कृष्ट अतिचार में उपवास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार क्षेत्र आदि के भेदों में भी जानना चाहिए। 1081. इसी प्रकार अदत्त और परिग्रह के द्रव्य आदि के भंगों के जघन्य अतिचार में एकासन, मध्यम में आयम्बिल तथा उत्कृष्ट में उपवास प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। 1082. इस प्रकार मृषावाद आदि के बारे में मैंने संक्षेपतः शोधि कही है। अब मैं रात्रिभोजन की शोधि को संक्षेप में कहूंगा। 34. लेपकृद् और शुष्क वस्तुओं के रात्रि में बासी रहने पर उपवास, गुड़ आदि आर्द्र वस्तु रात्रि में रहने पर बेला तथा रात्रिभोजन करने पर तेले से शोधि होती है। 1083. लेपकृद् सर्व विदित है। सोंठ, बेहडा आदि शुष्क औषध रात्रि में बासी रहने पर साधु की विशुद्धि उपवास प्रायश्चित्त से होती है। 1084. गुड़, घृत, तेल आदि गीली वस्तुओं की सन्निधि-रात्रि में बासी रहने पर साधु की विशुद्धि बेले के तप से होती है। 1. मूल गुण के अतिचार में यहां चार व्रतों से सम्बन्धित प्रायश्चित्त का वर्णन किया है। मैथुन के अतिचार सम्बन्धी प्रायश्चित्त का वर्णन मूलस्थान में कहा जाएगा। १.जीचू प.१४%, मेहुणाइयारस्स पुण मूलढाणे भणिहिई।