________________ अनुवाद-जी-२६-३० 379 1043. दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप-संयम, विनय और वैयावृत्त्य में अभ्युद्यत साधु का उत्साह बढ़ाना प्रशस्त उपबृंहण है। 1044. चरक आदि अज्ञान, अविरति और मिथ्यात्व में वर्तन करते हैं, उनकी प्रशंसा करना अप्रशस्त उपबृंहण है। 1045. स्थिरीकरण भी दो प्रकार का जानना चाहिए-प्रशस्त और अप्रशस्त / ज्ञान आदि में विषाद का अनुभव करने वाले साधु को स्थिर करना प्रशस्त स्थिरीकरण है। 1046. यह मनुष्य जीवन दोषबहुल है अतः तुम विषाद का अनुभव मत करो, ऐसी प्रेरणा देना प्रशस्त स्थिरीकरण है। अब मैं अप्रशस्त स्थिरीकरण को कहूंगा। 1047. मिथ्यादृष्टि चरक आदि का असंयम में स्थिरीकरण अप्रशस्त है अथवा पार्श्वस्थ आदि साधुओं को स्थिर करना भी अप्रशस्त है। 1048. वात्सल्य भी दो प्रकार का होता है-प्रशस्त और अप्रशस्त / मोक्षमार्ग, आचार्य आदि का वात्सल्य प्रशस्त तथा पार्श्वस्थ आदि का वात्सल्य अप्रशस्त है। 1049. आचार्य, ग्लान, प्राघूर्णक-अतिथि, असमर्थ, बाल और वृद्ध आदि को आहार, उपधि आदि से समाधि पहुंचाना प्रशस्त वात्सल्य है। 1050. पार्श्वस्थ, अवसन्न, कुशील, संसक्त, नित्यवासी तथा गृहस्थ आदि को समाधि पहुंचाना अप्रशस्त 1051. प्रभावना भी दो प्रकार की होती है-प्रशस्त और अप्रशस्त। मोक्षमार्ग, तीर्थंकर आदि की प्रभावना प्रशस्त तथा मिथ्यात्व और अज्ञान की प्रभावना करना अप्रशस्त प्रभावना है। 1. निशीथ भाष्य में अमूढदृष्टि में सुलसा, उपबृंहण में श्रेणिक, स्थिरीकरण में आचार्य आषाढ़ तथा वात्सल्य में आर्य वज्र के उदाहरणों का संकेत है। १.निभा 32; सुलसा अमूढदिट्ठि, सेणिय उववूह थिरीकरणसाढो।वच्छल्लम्मि य वइरो, पभावगा अट्ठ पुण होंति॥ 2. निशीथ भाष्य के अनुसार आचार्य और ग्लान के प्रति वात्सल्य का प्रयोग न करने पर चतुर्गुरु, तपस्वी और प्राघूर्णक के प्रति वात्सल्य न करने पर चतुर्लघु, बाल और वृद्ध के प्रति न करने पर गुरुमास तथा शैक्ष और महोदर --पेटू के प्रति वात्सल्य न करने पर लघुमास प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। १.निभा 30; आयरिए य गिलाणे, गुरुगा लहुगा य खम गपाहुणए। गुरुगो य बाल-वुड्ढे, सेहे य महोदरे लहुओ। 3. जिस साधु के पास जो गुण विशिष्ट है, वह उससे प्रवचन की प्रभावना करे, यह प्रभावना नामक दर्शनाचार है। प्रभावना के संदर्भ में भाष्यकार कहते हैं कि जिनेश्वर भगवान् का प्रवचन स्वभाव से प्रसिद्ध है, वह स्वयं दीप्त है फिर भी प्रभावना का विशेष महत्त्व है। प्रवचन के प्रभावक आठ कहे गए हैं -1. अतिशय ऋद्धिधारी (विशिष्ट ज्ञानी) 2. अतिशायी धर्मकथक 3. अतिशायी वादी 4. अतिशायी आचार्य 5. अतिशायी तपस्वी 6. अतिशायी नैमित्तिक 7. विद्यासिद्ध तथा 8. राजा आदि। १.निभा 31; कामं सभावसिद्धं, तु पवयणं दिप्पते सयं चेव। तह वि य जो जेणऽहिओ, सो तेण पभावते तंतु॥ २.निभा 33 /