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________________ 366 जीतकल्प सभाष्य 931. कंदर्प आदि पद तो दसवीं गाथा के अनुसार पूर्वोक्त क्रम से हैं। इनमें थोड़ा वर्तन होने पर इनकी विशोधि प्रतिक्रमण से होती है। 932. दूसरा प्रतिक्रमण द्वार समाप्त हो गया, अब तीसरा तदुभय द्वार कहूंगा। उसकी यह गाथा है। 13. संभ्रम-हड़बड़ी, भय, आतुरता, आपदा, सहसा, अनाभोग और परवशता आदि-इन सब कारणों से अतिचार होने पर तदुभय प्रायश्चित्त होता है, आशंकित होने पर भी तदुभय प्रायश्चित्त होता है। 933. हाथी, अग्नि, उदक आदि से संभ्रम होता है, वह अनेक प्रकार का है। दस्यु, म्लेच्छ तथा मालवस्तेन आदि का भय भी बहुत प्रकार का होता है। 934. क्षुधा और पिपासा आदि परीषहों से पीड़ित आतुर होता है, वह भी बहुविध होता है। आपदा चार प्रकार की होती है, उसको मैं संक्षेप में कहूंगा। 935. द्रव्य आपदा, क्षेत्र आपदा, काल आपदा और भाव आपदा-ये चार प्रकार की आपदाएं होती हैं। साधु के लिए जिस द्रव्य की प्राप्ति दुर्लभ होती है, वह द्रव्य आपत्ति है। 936. विच्छिन्न मडम्ब' आदि को क्षेत्र आपत्ति जानना चाहिए। दुर्भिक्ष का समय काल-आपत्ति तथा अत्यधिक ग्लान होना भाव आपत्ति है। 937, 938. सहसा और अनाभोग-अजानकारी की व्याख्या पहले हो चुकी, अब अनात्मवशपरवशता के बारे में कहूंगा। जो परवश होता है, वह अनात्मवश कहलाता है। वात, पित्त, श्लेष्म और सन्निपात आदि कारणों से व्यक्ति अनात्मवश-परवश होता है अथवा इन कारणों से व्यक्ति परवश होता 939. यक्षाविष्ट शरीर और मोहनीय कर्म का उदय-इन कारणों से व्यक्ति अनात्मवश-परवश होता है। १.जहां पास में सब दिशाओं में कोई गांव या नगर नहीं होता, वह विच्छिन्न मडम्ब कहलाता है। इसका दूसरा अर्थ -चारों ओर से छिन्न पर्वत पर बसा गांवा व्याख्या-साहित्य में विच्छिन्न मडम्ब के तीन विकल्प मिलते 1. जिसके एक योजन तक कोई दूसरा गांव न हो। २.जिसके ढाई योजन तक कोई दूसरा गांव न हो।' 3. जिसके चारों ओर आधे योजन तक गांव न हो।' १.जीचूवि पृ. 43; वोच्छिन्ना जत्थ सव्वासु वि दिसासु नत्थि कोइ अन्नो गामो नगरं वा तं, पार्श्वग्रामादिरहितं मडम्बं तथा चमडम्बं सव्वओ च्छिन्नमिति पव्वते। २.निचू, भा.३, पृ.३४६; जोयणब्भंतरे जस्स गामादी णत्थितं मडंबं। 3. उशांटी प.६०५मडंब त्ति देशीपदं यस्य सर्वदिश्वर्द्धतृतीययोजनान्तर्ग्रामो नास्ति। 4. स्थाटीप.८३; मडम्बानि सर्वतोऽर्द्धयोजनात् परतोऽवस्थितग्रामाणि।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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