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________________ जीतकल्प सभाष्य __ प्रायश्चित्त के द्वारा अपरिणामक और अतिपरिणामक मुनियों के मन में यह विश्वास पैदा किया जाता है कि प्रायश्चित्त के द्वारा संघ में विशुद्धि कराई जाती है तथा शेष मुनियों के मन में प्रतिसेवना के प्रति भय पैदा किया जाता है। प्रायश्चित्त प्रमादबहुल जीवों के चारित्र की रक्षा के लिए अंकुश के समान है। तत्त्वार्थवार्तिक में प्रायश्चित्त करने के अनेक प्रयोजनों का निर्देश किया गया है 1. प्रमाद जनित दोषों का निराकरण। 5. मर्यादा का पालन। २.मानसिक भावों की प्रसन्नता। 6. संयम की दृढ़ता। 3. शल्य रहित होना। 7. आराधना। 4. अनवस्था दोष का निवारण। प्रकारान्तर से शब्दभेद के साथ अनगारधर्मामृत में प्रायश्चित्त के प्रयोजन निम्न बिन्दुओं में निर्दिष्ट हैं * प्रमाद दोष का विच्छेद। * अपराध करने की परम्परा को रोकना। * मर्यादाहीनता का परिहार। * ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की सम्यक् आराधना। * भावों की निर्मलता। * संयम में दृढ़ता। * शल्यरहित होना। प्रायश्चित्त भाव-चिकित्सा का सशक्त माध्यम है। भाष्यकार के अनुसार प्रायश्चित्त औषध के . समान है, जो राग जनित रोगों का उपशमन करता है। यदि छोटे-छोटे अपराधों का प्रायश्चित्त नहीं किया जाता है तो वे बड़े अपराधों के कारण बन जाते हैं। इस संदर्भ में भाष्यकार ने चार उदाहरण प्रस्तुत किए हैं 1. संकरतृण-एक किसान नाली से खेत में पानी दे रहा था। उसमें संकरतृण तिरछा अटक गया। उसको नहीं निकालने से उसके सहारे अन्यान्य तृण भी वहां अटक गए। इससे सारणि से आने वाला पानी रुक गया और खेत सूख गया। 2. शकट-शकट पर छोटे-छोटे पत्थर डाले गए। उन पत्थरों को हटाया नहीं गया। एक दिन उस पर बड़ा पत्थर रखा गया, इससे शकट टूट गया। १.बृभा 6038; 3. तवा 9/22 पृ. 620 ; प्रमाददोषव्युदासः भावप्रसादो तेसिं पच्चयहेउं, जे पेसविया सुयं व तं जेहिं / नैःशल्यम् अनवस्थावृत्तिः मर्यादाऽत्यागः संयमदाढयभयहेउ सेसगाण य, इमा उ आरोवणारयणा / / माराधनमित्येवमादीना सिद्धयर्थं प्रायश्चित्त नवविध 2. निभा 6677 ; विधीयते। पच्छित्तेण विसोही, पमायबहुलस्स होइ जीवस्स। 4. अनध 7/35, 36, पृ.५११। तेण तदंकुसभूतं, चरित्तिणो चरणरक्खट्ठा।। 5. निभा 6507 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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