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________________ अनुवाद-जी-९ 361 इसका भी पांच वर्ष का-दोनों मिलकर दस वर्ष होते हैं। 890. साधु ने कहा-'आज समुद्देश है, ऐसे ही क्यों बैठे हो?' इतना सुनते ही साधु गोचरी के लिए तैयार हुए और पूछा-'कहां है समुद्देश?' उसने कहा-'गगन में देखो, आज राहु के द्वारा सूर्य का समुद्देशभक्षण हो रहा है।' साधु ने कहा-'यहां प्रचुर संखड़ियां-जीमनवार हैं।' मुनि गोचरी के लिए उद्यत हुए। उन्होंने पूछा-'कहां हैं संखड़ियां?' उसने कहा-'घर-घर में संखड़ी है क्योंकि घर-घर में आयु का खंडन हो रहा है।' 891. एक साधु ने उपाश्रय के पास मृत कुतिया को देखकर क्षुल्लक मुनि से कहा-'तुम्हारी जननी मर गई।' क्षुल्लक रोने लगा। तब साधु बोला-'तुम क्यों रोते हो, तुम्हारी मां तो जीवित है।' (मुनि बोला-'तब तुमने ऐसा कैसे कहा कि मेरी मां मर गई?') साधु बोला मैंने ठीक ही कहा–'यह जो कुतिया मरी है, वह कभी तुम्हारी माता रही होगी। अतीत में सभी जीव माता रूप में रह चुके हैं अतः यह कुतिया तुम्हारी मां है।' 892. अवसन्न साधु को देखकर मुनि बोला-'आज मैंने पारिहारिक' साधुओं को देखा।' इस प्रकार छलपूर्वक कहने वाले को लघुमास प्रायश्चित्त, कहां देखा यह पूछने पर यदि वह कहता है कि उद्यान में देखा तो गुरुमास प्रायश्चित्त, पारिहारिक साधुओं को देखने हेतु मुनि चले, जब तक वे उन्हें नहीं देख लेते, तब तक कहने वाले को चतुर्लघु और देख लेने पर भी अपनी बात पर दृढ़ रहने वाले को चतुर्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। 893, 894. 'ये साधु अवसन्न हैं'-ऐसा सोचकर लौटकर आने पर भी अपनी बात पुष्ट करे तो षड्लघु, साधु आचार्य के पास आलोचना करते हैं कि आज साधु द्वारा छले गए फिर भी वैसा ही कहने पर षड्गुरु प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। मुनि पूछते हैं –'उद्यानस्थ मुनि परिहार योग्य है फिर भी पारिहारिक कैसे हुए?' साधु कहता है कि वे परिहार करते हैं अतः अपारिहारिक कैसे हुए? ऐसा कहने वाले को छेद प्रायश्चित्त / साधुओं ने उससे पूछा-'वे किसका परिहार करते हैं? ' वह उत्तर देता है कि वे स्थाणु, कंटक आदि का परिहार करते हैं, इस प्रकार कहने वाले को मूल प्रायश्चित्त, जब वह कहता है कि तुम सब एक हो, मैं अकेला हूं तो अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त तथा तुम सब प्रवचन से बाहर हो, ऐसा कहने वाले को पारांचित प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। 1. 'समुद्देश' सामयिक शब्द है, जिसका सामान्य अर्थ है भोजन अथवा विवाह आदि के उपलक्ष्य में बनाए गए खाद्य पदार्थ, जिसको सब साधु-संन्यासियों में बांटने का संकल्प हो। 2. यहां सूक्ष्म मषा इसलिए है क्योंकि घर में सामान्य रूप से बनने वाले भोजन को संखडी नहीं कहा जाता लेकिन सूक्ष्म मृषाभाषी मुनि ने उसका अन्य अर्थ करते हुए कहा कि घर में पचन-पाचन आदि में पृथ्वीकाय आदि जीवों के आयुष्य का खंडन हो रहा है। '3. छल के कारण साधु के कहने का आशय यह था जिससे दूसरे साधु यह समझें कि इसने परिहारविशुद्धि चारित्र का पालन करने वाले साधुओं को देखा है।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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