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________________ 358 जीतकल्प सभाष्य 880, 881. सामाचारी' दशविध हैं-१. इच्छाकार 2. मिथ्याकार 3. तथाकार 4. आवश्यकी 1. शान्त्याचार्य के अनुसार साधुओं के कर्त्तव्य को सामाचारी कहा जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार सामाचारी का अर्थ है -मुनि का पारस्परिक आचार-व्यवहार / मूलाचार में सामाचारी के लिए 'समाचार' शब्द का प्रयोग हुआ है। इच्छाकार, मिच्छाकार आदि ओघ सामाचारी के दश भेद हैं। भगवती (25/555) और ठाणं (10/102) में सामाचारी का यही क्रम है लेकिन उत्तराध्ययन में क्रमभेद है (उ 26/2-4) / वहां निमंत्रणा के स्थान पर अभ्युत्थान है। यहां शब्दभेद का अंतर है, तात्पर्य एक ही है। शान्त्याचार्य ने अभ्युत्थान का अर्थ किया है-सब कार्यों को करने में उद्यत रहना। सामाचारी के विस्तार हेतु देखें उत्तराध्ययन के छब्बीसवें अध्ययन का आमुख पृ. 409, 410 / 1. उशांटी प.५३३; यतिजनेति कर्त्तव्यतारूपा.......सामाचारी। 2. मूला 123 / 3. उशांटी प.५३४; तथेति प्रतिपद्य च सर्वकृत्येषूद्यमवता भाव्यमिति तदनु तद्रूपमभ्युत्थानम्। . .. 2. जहां औचित्य हो, वहां स्वयं या अन्य के कार्य में प्रवृत्त होना इच्छाकार सामाचारी है। इसके दो रूप हैं 1. आत्मसारण-इच्छा हो तो मैं आपका यह कार्य करूं। 2. अन्यसारण -आपकी इच्छा हो तो आप मुझे सूत्र की वाचना दें, पात्र के लेप लगा दें आदि। नियुक्तिकार कहते हैं कि प्रयोजनवश यदि दूसरों से कार्य करवाना हो तो रत्नाधिक साधुओं को छोड़कर शेष साधुओं के समक्ष इच्छाकार शब्द का प्रयोग करना चाहिए अर्थात् आपकी इच्छा हो तो आप यह कार्य करें किन्तु जबरदस्ती कार्य नहीं करवाना चाहिए। आवश्यक नियुक्ति की हारिभद्रीय टीका के अनुसार आपवादिक मार्ग में आज्ञा और बलाभियोग का प्रयोग किया जा सकता है। 1. आवनि 436/12-15 / २.आवहाटी 1 पृ. 174 ; अपवादस्त्वाज्ञाबलाभियोगावपि दुर्विनीते प्रयोक्तव्यौ। 3. संयम योगों में अन्यथा आचरण होने पर, उसकी जानकारी होने पर 'मिच्छामि दुक्कडं' का प्रयोग करना मिथ्याकार सामाचारी है। जिस कार्य का मिथ्यादुष्कृत किया है, उस आचरण को पुनः नहीं दोहराना ही वास्तविक मिथ्याकार सामाचारी है। 1. आवनि 436/17, 18 / 2. आवनि 436/19 / 4. गुरु के वचन सुनकर तथाकार अर्थात् 'यह ऐसा ही है' का प्रयोग करना तथाकार सामाचारी है। तथाकार का प्रयोग किसके प्रति करना चाहिए, इसका स्पष्टीकरण करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं-जो कल्प-अकल्प (विधि-निषेध) का ज्ञाता है, महाव्रतों में स्थित है, संयम और तप से सम्पन्न है, उसके प्रति तथाकार (तहत्) का प्रयोग करना चाहिए अथवा गुरु जब सूत्र की वाचना दें, सामाचारी का उपदेश दें, सूत्र का अर्थ बताएं या अन्य कोई बात कहें तो शिष्य तथाकार-आपका कथन सत्य है, ऐसा प्रयोग करे। 1. आवनि 436/23, 24 / 5. आवश्यक कार्य हेतु स्थान से बाहर जाते समय 'मैं आवश्यक कार्य हेतु स्थान से बाहर जा रहा हूं' अतः 'आवस्सही' उच्चारण के द्वारा स्वयं के जाने की सूचना देना आवश्यकी सामाचारी है। 1. उशांटी प.५३४ ; गमने तथाविधालम्बनतो बहिनि:सरणे आवश्यकेषु अशेषावश्यककर्त्तव्यव्यापारेषु सत्सु भवाऽऽवश्यकी।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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