________________ 352 जीतकल्प सभाष्य 817. ईर्या आदि पांच समितियों में प्रमाद का वर्णन किया गया। अब प्रसंगवश मैं समिति में अप्रमाद के बारे में कहूंगा। 818. ईर्या समिति में अर्हन्नक साधु का उदाहरण है, जो अव्याक्षिप्त और जागरूक चित्त से पग-पग पर दृष्टिपूत युग प्रमाण मात्र भूमि पर दृष्टि टिकाए हुए चलता था। 819. अर्हन्नक साधु समिति से समित था। वह गड्ढे में गिर गया। प्रान्त देवता के द्वारा छलित होने से उसका पांव छिन्न हो गया। अन्य देवता ने उसके पैर का संधान कर दिया। 820-23. भाषा समिति से समित साधु भिक्षा के लिए निकला। घूमते हुए नगर पर चढ़ाई करने वाले किसी बाहर के सैनिक ने पूछा - "यहां कितने घोड़े और हाथी हैं? कितनी धन-राशि, कितना काष्ठ तथा धान्य आदि हैं? नगर सुखी है अथवा दुःखी?" वह भाषा समित साधु इस प्रकार बोला- 'मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता क्योंकि मैं स्वाध्याय और ध्यान-योग में लीन रहता हूं।" पुनः मुनि से उसने पूछा"घूमते हुए तुमने कुछ नहीं देखा या कुछ नहीं सुना, यह कैसे संभव है?" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मुनि ने कहा- "मुनि बहुत बातें कानों से सुनता है, अनेक दृश्य आंखों से देखता है लेकिन देखा हुआ या सुना हुआ सब कुछ कह नहीं सकता।" 824. जो साधु प्रयोजन होने पर निरवद्य भाषा का प्रयोग करता है, बिना कारण नहीं बोलता, विकथा और विस्रोतसिका-लक्ष्य से प्रतिकूल वार्ता से रहित होता है, वह साधु भाषा समिति से युक्त होता है। 825. जो मुनि बायालीस एषणा से सम्बन्धित आहार के दोषों का शोधन करता है, वह एषणासमित कहलाता है, यहां वसुदेव का दृष्टान्त है। 826-27. एषणा समिति में वसुदेव का उदाहरण है। वसुदेव किसी जन्म में मगध के नंदिग्राम में गौतम नामक उपदेष्टा ब्राह्मण था। उसकी भार्या का नाम वारुणि था। एकदा उसके गर्भ उत्पन्न हुआ। जब ब्राह्मणी का गर्भ छह मास का था, तब ब्राह्मण मर गया। 828-30. मामा ने बालक का पालन-पोषण किया। बालक मामा के यहां काम करता था। लोगों ने उसे कहा–'तुम्हारा यहां कुछ नहीं है।' मामा ने उसे कहा-'तुम लोगों की बातों को मत सुनो। मेरी तीन पुत्रियां हैं, उनमें जो ज्येष्ठा है, उसके साथ मैं तुम्हारा विवाह कर दूंगा।' मामा की बात सुनकर वह वहां कार्य करने लगा। विवाह का अवसर प्राप्त हुआ। उसकी बड़ी पुत्री ने विवाह के लिए अनिच्छा प्रकट कर दी। मामा ने कहा-'दूसरी लड़की के साथ विवाह कर दूंगा।' दूसरी पुत्री ने भी वैसे ही अनिच्छा व्यक्त कर दी। तीसरी पुत्री ने भी विवाह से इंकार कर दिया। 831-34. नंदिषेण ने विरक्त होकर नंदिवर्धन आचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर ली और बेले-बेले की १.कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 24 / 2. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 25 / 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं. 26 /