________________ 332 जीतकल्प सभाष्य लागतरण'–चावलों की पेया आदि का सेवन करना तप हेतुक प्रतिसेवना है। प्रवचन की प्रभावना या उसके हित के लिए गृहस्थ आदि को अभिवादन करता हुआ मुनि शुद्ध होता है, जैसे-विष्णु मुनि की विकुर्वणा।' 606. मैं ईर्या की शुद्धि नहीं कर सकूँगा इसलिए ईर्या-शोधन के लिए आंख के उपचार हेतु क्रिया करना ईर्या समिति हेतुक कल्पिका प्रतिसेवना है। क्षिप्त चित्त होने पर भाषा से सम्बन्धित प्रलाप के प्रशमन हेतु औषधपान करना द्वितीय-भाषा समिति हेतुक प्रतिसेवना है। तृतीय समिति की प्रतिसेवना इस प्रकार है६०७. रास्ते में अशिव आदि कारणों से अनेषणीय और शंकित आदि आहार यतनापूर्वक ग्रहण करने वाला शुद्ध होता है। 608. कम्पमान हाथ (कम्पन वात से पीड़ित) वाला मुनि उपकरणों का ग्रहण तथा प्रमार्जन आदि अन्यथा रूप से करता है, उसके लिए औषध आदि करता हुआ मुनि शुद्ध होता है। (यह आदान-निक्षेप समिति हेतुक प्रतिसेवना है।) 609. पंचमी समिति में कायिकी भूमि का संधान आदि से सम्बन्धित आरम्भ करता हुआ मुनि शुद्ध होता है। मन से अगुप्त होने पर विकट-मद्यपान करता हुआ मुनि शुद्ध होता है। इसी प्रकार वचन गुप्त तथा क्षिप्तचित्त और दृप्तचित्त होने पर प्रतिसेवना करना जानना चाहिए। (यह गुप्ति हेतुक कल्पिका प्रतिसेवना है।) 610. साधर्मिक वात्सल्य के लिए प्रतिसेवना करना, जैसे आर्य वज्र ने असित मुंड का उद्धार किया था। कुल, गण और संघ के लिए राजा आदि को अभिचारक' मंत्र से वशीकृत करता हुआ. मुनि शुद्ध होता है। 1. लाया का अर्थ है-चावलों की खील / उसको भट्टी में पूंजकर जो पेया तैयार की जाती है, वह लागतरण कहलाती है। १.जीचूवि पृ. 34 ; लाया नाम वीहिया भुज्जिया भट्टे ताण तंदुलेसु पेया कज्जइ, तं लायातरणं भन्नइ। 2. मूल पाठ में कथा का संकेत नहीं है लेकिन निशीथ चूर्णि (भा 1 पृ. 163) में इस प्रसंग में कथा का संकेत है। कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं. 16 तथा राजेन्द्र अभिधान कोश भा. 5 पृ. 886, 887 / 3. विष्णु मुनि ने प्रवचन की प्रभावना हेतु रुष्ट होकर एक लाख योजन प्रमाण शरीर की विकुर्वणा की तथा एक पैर से लवण समुद्र का आलोड़न किया। विशेषावश्यक भाष्य और उसकी चूर्णि में 500 आदेशों का उल्लेख है, जिनका वर्णन अंग और उपांग में नहीं मिलता। वहां विष्णु मुनि की विकुर्वणा को 500 आदेशों के अंतर्गत माना है। वहां एक लाख योजन से अधिक विकुर्वणा की, ऐसा उल्लेख है। १.निभा 487 चू पृ.१६२; जहा विण्हु अणगारो, तेणरुसिएण लक्खजोयणप्पमाणं विगुब्वियं रूवं,लवणो किल आलोडिओ चरणेण तेण। 2. विभा 3357 महेटी पृ. 640 / 4. क्रिया का अर्थ है-वैद्य के कथनानुसार औषध लेना। १.निचू 1 पृ. 163 ; क्रिया नाम वैद्योपदेशाद् औषधपानम्। 5. ग्रंथकार ने समिति के अन्तर्गत पांचों समितियों के उदाहरण दिए हैं। 6. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2. कथा सं. 17 / 7. अभिचारक का अर्थ है-वशीकरण या उच्चाटन आदि करना। १.निचू 1 पृ.१६३; अभिचारकं णाम वसीकरणं उच्चाटणं वा।