________________ 318 जीतकल्प सभाष्य 474. समस्त लोक के रत्नों में सारभूत ऐसे आहार-रत्न का सर्वथा त्याग करके साधु प्रायोपगमन अनशन में विहरण करते हैं। (वे धन्य हैं।) 475. इस प्रकार प्रायोपगमन अनशन को जिनेश्वर भगवान् ने निष्प्रतिकर्म प्ररूपित किया है। इसको सुनकर अनशनधारी अध्यवसाय और पराक्रम करता है। 476, 477. कोई अनशनग्रहण कर्ता परीषहों से व्याकुल होकर अथवा वेदना से आर्त होकर कदाचित् अशन या पानक की याचना करे तो उसे 'तुम गीतार्थ हो या अगीतार्थ' यह स्मृति कराकर प्रतिबोध देकर छठे रात्रिभोजन विरमण सम्बन्धी बोध देकर पहले अशन तथा फिर पानक प्रस्तुत करे। 478. भक्तप्रत्याख्याता को परीषह रूप सेना के साथ मन, वचन और काया से युद्ध करना पड़ता है अतः मरण के समय कवचभूत आहार उसे दिया जाता है। 479. दो संग्राम हुए -महाशिलाकंटक तथा रथमुशल। इनका वर्णन भगवती सूत्र में है। असुरेन्द्र चमर और देवेन्द्र शक्र ने कूणिक के लिए वज्रमय कवच का निर्माण किया। राजा चेटक युद्ध में एक ही बाण चलाते थे। 1. अनशन स्वीकार करने के पश्चात् कभी-कभी भक्तप्रत्याख्याता प्रान्त देवता से प्रभावित होकर भी भक्त-पान की याचना कर लेता है। स्पष्टीकरण के लिए उससे प्रश्न पूछना चाहिए। यदि वह सब प्रश्नों के उत्तर सही दे तो. जान लेना चाहिए कि यह प्रान्त देवता से अधिष्ठित नहीं अपितु परीषहों से प्रभावित होकर याचना कर रहा है। 1. व्यभा 4361 मटी प. 72 / 2. भगवती सूत्र में महाशिलाकंटक और रथमुशल संग्राम का वर्णन मिलता है। युद्ध की पृष्ठभूमि का विस्तृत वर्णन निरयावलिका सूत्र में मिलता है। ये दोनों युद्ध राजा चेटक और कूणिक के मध्य हुए। इनमें असुरेन्द्र चमर और देवेन्द्र शक्र ने कूणिक को पूर्ण सहयोग दिया। देवेन्द्र शक्र ने वज्रमय अभेद्य कवच का निर्माण किया। राजा कूणिक ने दोनों युद्धों में नौ मल्ल और नौ लिच्छवियों को हराया। महाशिलाकंटक संग्राम में अश्व, हाथी या योद्धा आदि पर तृण, काष्ठ या कंकर का भी प्रहार किया जाता तो दिव्य प्रभाव से शत्रु सेना को ऐसा अनुभव होता मानो महाशिला से प्रहार किया जा रहा हो। इस युद्ध में चौरासी लाख मनुष्य मारे गए। दूसरे रथमुशल संग्राम में भी राजा कूणिक ने नौ मल्ल और नौ लिच्छवियों को जीता। इस युद्ध में एक रथ चल रहा था, जिसमें न घोड़ा जुता हुआ था और न ही कोई सारथी उसे चला रहा था। उसमें कोई योद्धा भी बैठा हुआ नहीं था। उसमें एक मुशल था, जिसके द्वारा फेंका गया एक पत्थर या कंकर भी मुशल जैसा प्रहार करता था। वह प्रलय करता हुआ योद्धाओं का वध कर रहा था अतः उस संग्राम का नाम रथमुशल संग्राम हुआ। इस युद्ध में छियानवें लाख मनुष्य मारे गए। कुल मिलाकर इन दोनों युद्धों में एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्य मारे गए। इस युद्ध में चेटक ने अपने देवप्रदत्त बाण से कूणिक के दस भाइयों को मार दिया। तब कोणिक ने दुःखी होकर त्रिदिवसीय अनुष्ठान किया तथा सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र की आराधना की। पूर्व मित्रता के कारण चमर ने महाशिलाकंटक और रथमुशल युद्ध प्रदान किया। बौद्ध साहित्य में अजातशत्रु विदेहपुत्र और वज्जी गणराज्य के बीच युद्ध का वर्णन प्राप्त होता है, वहां चेटक के नाम का उल्लेख नहीं है। 1. भ. 7/173-211 / 2. निर. 1/94-141 / 3. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.५।