________________ जीतकल्प सभाष्य 4. सदाचार-अन्यान्य स्थितियों, क्षेत्रों, व्यक्तियों में प्रचलित वे धारणाएं, जो श्रुतियों और स्मृतियों के विपरीत न हों। 5. स्वसमाधान-आत्मा की आवाज। व्यवहारी की अर्हता व्यवहारी शब्द हिन्दी शब्दकोशों में मुकदमा लड़ने वाला तथा वादी आदि अर्थों में प्रयुक्त है। सूत्रकृतांग में व्यवहारी' शब्द का प्रयोग व्यापारी के लिए हुआ है। कौटिल्य ने व्यवहारी शब्द न्यायकर्ता के लिए प्रयुक्त किया है। शब्दकल्पद्रुम में सोलह वर्ष के बाद व्यक्ति व्यवहारज्ञ बनता है, ऐसा उल्लेख मिलता व्यवहारी की अर्हताएं भाष्यसाहित्य में विकीर्ण रूप से मिलती हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी व्यवहारी (न्यायकर्ता) की कसौटियां वर्णित हैं। मनुस्मृति के अनुसार वेदविद ब्राह्मण प्रायश्चित्त देने का अधिकारी है क्योंकि ज्ञानी का वचन पवित्र होता है। याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार जो श्रुति आदि के अध्ययन से युक्त, सत्यवादी, धर्मज्ञ और शत्रु तथा मित्र में समदृष्टि वाला है, वह व्यवहार-न्याय के योग्य होता है। नारद स्मृति भी इसी की संवादी है।" जो आगम आदि व्यवहार को सम्यक् रूप से जानकर प्रायश्चित्तदान में उसका सम्यक् प्रयोग करता है, वह व्यवहारी है। भाष्यकार के अनुसार व्यवहार करने का अधिकार उसे प्राप्त होता है, जो मुनि युगप्रधान आचार्य के पास तीन परिपाटियों से व्यवहार आदि छेद ग्रंथों का सम्पूर्ण रूप से सम्यक् अवबोध प्राप्त कर लेता है। वे तीन परिपाटियां इस प्रकार हैं 1. सूत्रार्थ का परिच्छेद पूर्वक उच्चारण। 2. पदविभाग पूर्वक पारायण। 3. निरवशेष पारायण। जब शिष्य तीनों परिपाटियों से सम्पूर्ण सूत्रार्थ का पारगामी हो जाता है, तब वह व्यवहार करने के 8. Aspects of Jain Monasticism p.31 2. सू 1/3/78 समुदं व ववहारिणो। 3. शब्दकल्पद्रुम भाग 4 पृ. 543 / 4. कौ अधि 3 पृ. 342 ; एवं कार्याणि धर्मस्थाः, कुर्युरच्छलदर्शिनः / समाः सर्वेषु भावेषु, विश्वास्या लोकसम्प्रियाः।। 5. मनु 11/85 / ६.यान 2/2; श्रुताध्ययनसम्पन्ना, धर्मज्ञाः सत्यवादिनः। राज्ञा सभासदः कार्या, रिपौ मित्रे च ये समाः।। 7. नारद स्मृति 1/44 / 8. व्यभा 520 टी. प.१८ / 9. व्यभा 1709 /