________________ पाठ-संपादन-जी-९७-१०० 257 2536. अह णेच्छति तो संघो, लिंगं हरती' ण' हरति सिं एगो। ___ मा गच्छेज्ज पदोसं, छड्डत्तऽसत्तीऍ पासुत्तं / / 2537. णिद्दपमत्तो एसो, पारंची लिंगतो समक्खातो। कुणमाण अण्णमण्णं, पारंचीयं अतो वोच्छं / / 2538. करणं तु अण्णमण्णे, समणाण ण कप्पती सुविहिताणं। किह करण अण्णमण्णे?, भण्णति इणमो णिसामेहि // 2539. आसयपोसयसेवी, केई पुरिसा दुवेदगा होति। तेसिं लिंगविवेगो, 'कातव्वो होति णियमेणं'२ // 2540. चरिमं अंतं भण्णति, तं पुण पारंचियं ति णातव्वं / 'पारंचियावराहे, पुणो पुणो सज्जते जो तु॥ 2541. थीणद्धिमादियाणं, सोहिं वोच्छं पुणो वि सव्वेसिं। __ लिंगादीणं कमसो, एत्थ इमा होति गाहाओ। सो कीरति पारंची, लिंगाओ खेत्तकालतो तवतो। संपाडगपडिसेवी, लिंगाओ थीणगिद्धी य॥ 97 // वसहि-णिवेसण-वाडग-साहि-णियोग-पुर-देसरज्जाओ। खेत्ताओ पारंची, कुल-गण-संघालयाओ वा // 98 // जत्थुप्पण्णो दोसो, उप्पज्जिस्सति व जत्थ णाऊणं। तत्तो तत्तो कीरति, खेत्ताओ खेत्तपारंची॥ 99 // जत्तियमेत्तं कालं, तवसा पारंचियस्स उप स एव। कालो दुविगप्पस्स वि', अणवठ्ठप्पस्स जोऽभिहितो॥ 100 // 2542. आसातण पडिसेवण, दुह अणवट्ठम्मि जो भवे कालो। पारंचिए वि सो चेव, होति 'उक्कोसग जहण्णो" / 1. हरति (ब, ला)। २.णे (ला)। 3. बितियपदं रायपव्वइते (बृ 5026), इस गाथा के बाद प्रतियों में 'अण्णोण्णसेवणे त्ति गतं' का उल्लेख है। 4. पाडग (ला)। 5. य (ब)। ६.वि (ला)। 7. ति (ता)। 8. समजह (ला), पा प्रति में गाथा का उत्तरार्ध नहीं है।