________________ 258 जीतकल्प सभाष्य 2543. पारंचिया उ एते, तिण्णि वि सामण्णतो विणिद्दिट्ठा / एत्तो जोर जारिसओ, विसेसमेतेसिँ वोच्छामि॥ 2544. दुढे य पमत्ते या, अण्णोण्णासेवणापसत्ते य। एतेसिं तिण्हं पी, विसेसमेत्तोपवक्खामि॥ 2545. तहियं तु विसयदुट्ठो, सपक्खपरपक्खतो व जो होज्जा। सो कीरति पारंची, खेत्तेणं तू ण लिंगेणं // 2546. अणुवरमंतो कीरति, सेसो णियमेण लिंगपारंची। खेत्तेण य लिंगेण य, पारंची अभिहिता एते॥ 2547. किं एते च्चिय भेदा, पारंचीए उदाहु अण्णे वि?। भण्णति तवपारंची, अण्णो वि हु केरिसो स खलु?॥ 2548. इंदियपमाददोसा, जो तू अवराहमुत्तमं पत्तो। सब्भावसमाउट्टो, जइ य गुणा से इमे होंति // 2549. वइरोसहसंघतणो, धितीय जो वज्जकुडुसामाणो। णवमस्स ततियवत्थु, सुत्तऽत्थेहिं च जोऽहीतो॥ 2550. खुड्डगसीहतवादीहिँ भावितो जो य इंदियकसाए / निग्घेत्तूण समत्थो, पवयणसारं अभिगतत्थो॥ 2551. 'निज्जूहितस्स असुभो, तिलतुसमेत्तो वि जस्स ण य भावो। निज्जूहणाएँ अरिहो, सेसे णिज्जूहणा णत्थि // 2552. एयगुणसंपउत्तो, पावति 'पारंचियं तु सो- ठाणं / एयगुणविप्पमुक्के, तारिसगम्मी भवे मूलं // 2553. पारंचियं तु पावति, आसाएंतो तहेव पडिसेवी। एक्केक्को होति दुहा, जहण्ण उक्कोसगो चेव // 1.x (ला)। 2. व सेस (ता, ला)। 3. पुण (बृ५०२८)। 4. पुणो (ता, ब, ला)। 5. गा. 2549 और 2550 के स्थान पर बृ (5029) में निम्न गाथा मिलती है संघयण-विरिय-आगम-सुत्तत्थ-विहीए जो समग्गो तु। तवसी निग्गहजुत्तो, पवयणसारे अभिगतत्थो॥ 6. "सारे (पा, ब)। ७.तिलतुसतिभागमित्तो वि जस्स असभो ण विज्जती भावो। (बृ५०३०)। 8. चियारिहं (बृ 5031) /