________________ 256 जीतकल्प सभाष्य थीणद्धिमहादोसो', अण्णोण्णासेवणापसत्तो य। चरिमट्ठाणावत्तिसु, बहुसो य पसज्जते जो उ॥१६॥ 2528. जह उदगम्मि घते वा, थीणम्मी णोवलब्भते किंची। इदं चित्तं भण्णति, तं थीणं तेण थीणद्धी॥ 2529. पिसितासि पुव्वमहिसं, विगिंचित दिस्स तत्थ णिसि गंतुं। अण्णं हतुं खायति', उवस्सयं सेसगं णेति // 2530. मोदगभत्तमलद्धं, भंतु कवाडे घरस्स णिसि खाति। भाणं च भरे ऊणं, आगतों आवासए वियडे / 2531. अवरो 'वि फरुसमुंडो", मट्टियपिंडे व छिंदिउं सीसें। एगते पव्विंधति', पासुत्ताणं विगडणा य॥ 2532. अवरो विवाडितो९ मत्तहत्थिणा पुरकवाड भंतूणं१२ / तस्सुक्खणित्तु दंते, वसहीबाहिं विगडणा य॥ 2533. उब्भामग वडसालेण घट्टितो केइ पुव्व" वणहत्थी। वडसालभंजणाऽऽणण५, 'उस्सग्गाऽऽलोयण पभाते'१६ // 2534. तस्सोदयकालम्मी, हवती जं केसवस्स अद्धबलं / ण वि देति अणतिसेसी, लिंगं अवि केवली होज्जा। 2535. णातम्मि पण्णविज्जति, मुय लिंगं णत्थि तुज्झ चारित्तं / देसवत दंसणं वा, गिण्हसु इच्छंत रमणिज्ज // 1. दोसा (ब, मु)। 10. या (पा), कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.६७। २.विविंचियं (ता, मु), विगच्चियं (बृ 5018) / 11. वि घाडिओ (बृ 5021) / 3. दट्ट (नि 136) / 12. भेत्तूण (नि 139) / 4. खइतं (नि)। १३.तु (नि), कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.६८। 5. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.६५। / 14. पुण (पा, ब, ला)। 6. भेत्तु (नि 137) / 15. “णय (नि 140) / 7.65019, कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.६६। 16. “यणा गोसे (65022), उवस्सयालोयण पभाते (नि 140), 8. फरुसग मुंडो (बृ 5020, नि 138) / कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.६९। 9. अवयज्झइ (बृ), पाडेति (नि)। 17. लम्मि (ता, मु)। शा