________________ 254 जीतकल्प सभाष्य .. 2505. परपक्खो परपक्खे, रायामादीपदुट्ठों जो वि भवे। तस्स सदेसें ण कप्पति, कप्पति अण्णम्मि उवसंते॥ 2506. एसो कसायदुट्ठो, विसयपदुटुं इदाणि वोच्छामि। तस्स वि सपक्खपरपक्खतो य चतुभंग तह चेव॥ 2507. संजति कप्पठितें पढमों, सेज्जातरि अण्णतित्थिणी बीओ। परपक्खे संजतीएँ, उभयपरो होति उ चतुत्थो / 2508. लिंगेण लिंगिणीए, संपत्ति जइ निगच्छती पावो। निरयाउगं णिबंधति, 'आसायणओ अबोही य॥ 2509. लिंगेण लिंगिणीए, संपत्तिं जो निगच्छती' पावो। सव्वजिणाणऽज्जाओ, संघो आसादितो तेणं // 2510. पावाणं पावतरो, 'दगुण ण वट्टए हु साहूणं"। जो जिणपुंगवमुई, णमिऊण तमेव धरिसेति // 2511. संसारमणवयग्गं, जाति-जरा-मरण-वेदणापउरं / पावमलपडलछन्ना, भमंति मुद्दाधरिसणेणं // 2512. एसो पढमगभंगो, पारंचियमेत्थ होति पच्छित्तं / बितियगभंगम्मि तहा, अणुवरयम्मी भवे चरिमं // 2513. जत्थुप्पज्जति दोसो, कीरति पारंचिओ स तम्हा तु / सो पुण 'सेवि असेवी'', गीतमगीतों व एमेव // 2514. 'वसहि-णिवेसण-वाडग, साही तह गाम देस रज्जे य। कुल गण संघे णिज्जूहणाएँ पारंचिओ होति // 2515. उवसंतो वि समाणो, वारिज्जति तेसु तेसु ठाणेसु / हंदि हु पुणो वि दोसं, तट्ठाणाऽऽसेवणा कुणति / / 2516. जेसु विहरंति ताओ, वारिज्जति णवर तेसु ठाणेसु / ____ पढमगभंगे ताई", सेसेसु वि ताइँ ठाणाई। 1. संपत्ती (नि 1690) / 2. मूढो (नि)। 3. यण दीहसंसारी (नि)। ४.णियच्छती (बृ 5008) / 5. दिविऽब्भासे वि सो ण वट्टति हु (बृ 5009) / . 6. बृ५०१०। 7. सेवीमसेवी (बृ५०११)। 8. उवस्सय कुले निवेसण वाडग साहि (बृ५०१२)। 9. बृ५०१३। 10. एवं (बृ५०१४)।