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________________ पाठ-संपादन-जी-९५ 253 2495. गुरुसंसट्टव्वरितं', बालादसतीय मंडलिं जाति। 'जो अण्णायरमत्तग, गिलाणभुत्तुव्वरित्ते वि॥ 2496. सेसाणं संसटुं, न छुब्भती मंडलीपडिग्गहए। पत्तेग गहित छुब्भति, उब्भासण' लंभ मोत्तूणं॥ 2497. पाहुणगट्ठा व तर्ग', धरेत्तु अतिबाहडं विगिंचंति। इति गहणभुंजणविधी, 'अविधीगहणेण दोसेते // 2498. एते सपक्खदुट्ठा, परपक्खें उदायिमारगादीया / परपक्खसपक्खम्मि य, पालक्कादी मुणेतव्वा / 2499. पालक्को तु पुरोहित, खंदगपमुहाण जेण पंच सता। पुट्विं विराहितेणं, जंते पीलाविता जतिणो" // 2500. मुणिसुव्वयतित्थम्मी, वादेण पराइतो स पुट्विं तु। . खंदग रण्णो ताहे, पावो स पदोसमावण्णो॥ 2501. परपक्खो परपक्खे, रायादी अभिमरा जहा केई। वधपरिणता व वहगा, भणिता चत्तारि दुद्रुते॥ 2502. एतेसि चतुण्डं पी, पच्छित्तमहाविधिं पवक्खामि। जे सासवणालादी, लिंगविवेगो भवे तेसिं॥ 2503. 'जो वि सपक्खो रायादियाण वधपरिणतो व वहगो वा१२ / सो लिंगतों पारंची, जो वि य परिवडते' तं तु॥ 2504. सण्णी व असण्णी वा, जो 'परपक्खे सपक्खें दुट्ठो तु। तस्स णिसिद्धं लिंगं, अतिसेसी वावि 'से देज्जा'१५ // 1. गुरुणो भुत्तुव्व (बृ५००२)। 2. पण सेसंगगहितं गिलाणमादीण तं दिति (ब)। 3. सेसाण (पा, ला)। 4. 'हतं (ला)। 5. पत्ते गहितं (ब, मु)। 6. ओभा' (बृ 5003) / ७.वयं (ता)। ८.इह (बृ५००४)। 9. अविधीऍ इमे भवे दोसा (बृ)। 10. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.६३। 11. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.६४। 12. रायवधादिपरिणतो, अहवा वि हवेज्ज रायवहओ तु __ (बृ 4994) / 13. परिककृती (बृ)। 14. दुट्ठो होति तू सपक्खम्मि (बृ 4995) / 15. दिज्जाहि (ब)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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