________________ पाठ-संपादन-जी-९४,९५ 251 2476. सव्वे वाऽऽसाएंतो, पावति पारंचितं तु सो ठाणं / ___ एत्थं पुण सचरित्ती, देसे सव्वे य अचरित्ती॥ 2477. तित्थगरपढमसीसं', एक्कं 'वी सादयंतों'२ पारंची। अत्थस्सेव जिणिंदो, पभवो 'सुत्तस्स सो जेणं 2 // 2478. आसायणपारंची, एमेसो वण्णितो समासेणं। पडिसेवणपारंची, एत्तो वोच्छं समासेणं / / जो य सलिंगे दुट्ठो, कसायविसएहिं रायवहगो य। रायग्गमहिसिपडिसेवगो य बहुसो पगासो य॥ 95 // 2479. पडिसेवणपारंची, तिविहेसो वण्णितो तु सुत्तम्मि। दुट्ठादीहिँ पदेहिं, समासतो हं पवक्खामि // 2480. दुट्ठो य पमत्तो या, अण्णोण्णासेवणापसत्तो उ। एतेसि विभागं तू, वोच्छामि जहक्कमेणेव // 2481. दुविधो य होति दुट्ठो, कसायदुट्ठो य विसयदुट्ठो य। दुविधो कसायदुट्ठो, सपक्ख-परपक्ख-चतुभंगो // 2482. सासवणाले मुहणंतगे य उलुगच्छि सिहरिणी चेव। एते. सपक्खदुट्ठा, 'एतेसि परूवणा इणमो" // 2483. सासवणाले 'लद्धं, गुरु छंदिय खइय सव्वितर कोधो 10 / खामण अणुवसमंते, गणी ठवेत्तऽण्णहि परिण्णा२॥ 2484. पुच्छंतमणक्खाते, सोच्चऽण्णतों गंतु कत्थ से सरीरं? / 'गुरु पुव्वकहित ऽदाइय५, 'पडियरणं दंतभंजणया'१६ // 1. सिस्सं (बृ 4984) / 2. पाऽऽसादयंतु (ब)। 3. सो जेण सुत्तस्स (बृ)। 4.4 (ता, ला)। 5. तु.बृ 4985 / 6. य (ता), 4 (पा)। 7.6 4986, पंक 451, नि 3681 / 8. एसो (बृ 4987) / 9. परपक्खे होति णेगविधो (ब)। १०.छंदण गुरु सव्वं भुजें एतरें कोवो (बृ४९८८,नि 3683) / 11. गणिं (ब)। 12. तु. पंक 453, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, कथा सं.५९। 13. देहं (पंक 454) / 14. गुरुणा पुव्वं कहिते (पंक 454, नि 3684) / 15. ऽदातण (बृ 4989) / 16. चरण दंतवहो (पंक, नि)।