________________ पाठ-संपादन-जी-९३ 247 2437. तस्स य परिहारतवं, पडिवज्जंतस्स कीरउस्सग्गो। संघाडठवणभीते, आससय समत्थकरणं च॥ 2438. किं कारणमुस्सग्गो?, भण्णति सेहाण जाणणट्ठाए। भयजणणट्ठाय तहा, णिरुवस्सग्गट्ठया चेव' / 2439. कप्पद्वितो. अहं ते, अणुपरिहारी य एस 'गीतो ते 2 / पुव्वं कतपरिहारो, 'तस्सऽसतिऽण्णो'२ वि दढदेहो / 2440. एस तवं पड्विज्जति, ण किंचि आलवति मा प' आलवहाँ / अत्तट्ठचिंतगस्सा, वाघातो भे ण कातव्वो // 2441. ताहे य परिहरिज्जति, गच्छेणं सो य परिहरति गच्छं। अपरिहरंताऽऽरोवण, दसहिँ पदेहिं इमेहिं तु॥ 2442. आलावण पडिपुच्छण, परियदृट्ठाण वंदणग मत्ते। पडिलेहण संघाडग, भत्तदाण संभुंजणा चेव // 2443. 'जा संघाडो ताव* तु, लहगो मासो 'तु होति गच्छस्स२० / लहुगा य भत्तदाणे, संभुंजण होतऽणुग्घाता॥ 2444. संघाडगो तु जाव उ, गुरुगो मासो दसण्ह तु पदाणं। ‘भत्तस्स दाण११ संभुंजणे य परिहारिगे गुरुगा। 2445. कितिकम्मं च पडिच्छति, परिण 'पडिपुच्छ देति य गुरू से२। सो वि य गुरुमुवचिट्ठति, उदंतमवि पुच्छितो कहते२ // 2446. एवं तू ठवणाए, ठवियाएँ भयं तु कस्सतुववज्जे। किह नु मए एक्केणं, णित्थरियव्वेत्तिओ कालो? // 1. इस गाथा के बाद प्रतियों में 'उस्सग्गो त्ति' का उल्लेख है। 8. व्य 550, बृ 5137,5598, नि 2881 / 2. ते गीओ (नि)। 9. संघाडगो उ जाव (बृ 5599), ३."तितरो (व्य 548), सयण्णो (नि 2879) / संघाडगाओ जाव (नि 2882) / .४.इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में संघाडे त्ति गतं' का १०.दसण्ह उ पदाणं (बृ, व्य 551) / उल्लेख है। 11. भत्तपयाणे (व्य ५५२,नि 2883) / 5.5 (व्य 549), यहां'ण' वाक्यालंकार के अर्थ में प्रयुक्त है। 12. च्छणं पि से देति (व्य 553, नि 2884) / 6. वह (व्य, नि 2880) / 13. कहतो (ता, पा, ब, ला),सभी प्रतियों में इस गाथा के * 7.15597 / बाद 'ठवणे त्ति गतं' का उल्लेख है।