________________ 246 जीतकल्प सभाष्य 2425. ओसण्णमादिया तू, अणुवरता दोस लिंगसहिता ऊ। अणवठ्ठप्पा ते ऊ, कातव्वा भावलिंगेणं // 2426. कालतों अणवठ्ठप्पो, अणउवरतदोस जत्तियं कालं। सो अणवट्ठो कीरति, जत्तियमेत्तं तगंरे कालं // 2427. तवअणवट्ठो दुविधो, आसायणयाय' होति पडिसेवी। एक्केक्को वि य दुविधो, जहण्णगो चेव उक्कोसो॥ 2428. तवअणवट्ठोऽऽसायण, जहण्ण छम्मास वरिसमुक्कोसं। के पुण आसाएंती?, जिणमादी जा महिड्डीयं / / 2429. पडिसेवी अणवट्ठो, जहण्ण वरिसं तु बारसुक्कोसा। किं पुण पडिसेवति तू?, तेण्णादीया पदा सव्वे // 2430. कारणमादिपदा तू, उवरि वोच्छिंसु अहुण परिहारं / वंदणमादी य पदा, समासतो हं इमं वोच्छं / 2431. परिहरणं परिहारो, आलावणमादि दसहि तु पदेहिं / सेहादिए वि वंदति, सो पुण ण वि वंदणिज्जो तु॥ 2432. केरिसगुणसंजुत्तो, अणवट्ठो कीरती? इमं सुणसु। संघतण-विरिय-आगम-सुत्तत्थ-विधीय उववेतो / 2433. उवरिमतिगसंघतणो, सव्वगुणो केवलं अजितणिदो। देज्जा से सव्वतवं, अणवटुं वावि पारंची॥ 2434. नवदसपुव्वकतत्थो, सड्ढो इव उग्गमधितिकतकरणो। परिणामसमग्गो त्ति य, अणवठ्ठप्पं स दातव्वं / / 2435. एवं तु गुणसमग्गो, चरित्तसेढिं तु णट्ठ भिण्णं वा। पोराणियगुणसेढिं, निरवयवं सो तु पूरेति // 2436. 'सो वंदति सेहादि वि, पग्गहिततवो जहा*६ जिणो चेव। विहरति बारसवरिसे', अणवट्ठप्पो गणे चेव॥ 1. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'खेत्ततो गतं' का उल्लेख . ५.धितीय (ब, ला, मु)। 6. सेहाई वंदंतो पग्गहियमहातवो (ब 5135) / स जा 2. गतं (ब)। 2 दम्प गाथा के बाद सभी प्रतियों में काले त्ति गतं 'का उल्लेख है।