________________ 242 जीतकल्प सभाष्य 2387. एरिसगे आगाढे, बोहिगमादीसु जीतसंदेहे। जं जस्स तु सामत्थं, सो तु ण हावेति एत्थं तु॥ 2388. कुणमाणो वि हु करणं', कतकरणो णेव दोसमब्भेति। अप्पेण बहु' इच्छति, विसुद्धमालंबणो समणो॥ 2389. आयरियस्स विणासे, गच्छे अहवा वि कुल गणे संधे। पंचिंदियवोरमणं, पि कातु नित्थारणं कुज्जा // 2390. एवं तु करेंतेणं, अव्वोच्छित्ती कता तु तित्थम्मि। जइ वि सरीरावायो, तह वि य आराधगो सो * उ॥ 2391. जो पुण सइ सामत्थे, विज्जातिसती व अहव सारीरे। एरिसगे आगाढे, हावेंतों विराधगो' भणितो॥ 2392. एतं हत्थायालं, हत्थालंबं इमं मुणेतव्वं / दुक्खेण अभिदुताणं, जं सत्ताणं परित्ताणं / / 2393. असिवे पुरोवरोधे, एमादी वइससेसु अभिभूता। संजातपच्चया खलु, अण्णेसु य एवमादीसु॥ 2394. मरणभएणऽभिभूते, ते णातुं 'तेहिं वावि भणिता तु"। पडिमं काउं मझे, चिट्ठति मंते परिजवेंतो / 2395. एतं हत्थालंब, हत्थादाणं अओ परं वोच्छं। जो अत्थं उप्पाए, णिमित्तमादी इमं णातं // 2396. उज्जेणी उस्सण्णं, दो वणिया पुच्छिऊण आयरियं। 'ववहारं ववहरंति'", तं ताहे तेसि सो साहे // 2397. तस्स य भगिणीपुत्तो, भोगहिलासी तु मुंचते लिंग। तो अणुकंपा भणती, किं काहिसि तं विणऽत्थेणं // 1. कडणं (ला, मु)। 2. बहू (ब)। 3. राहगो (ब)। 4. बृ५११२। 5. देवतं वुवासंते (65113), वावि भणियत्थे (ता)। 6. पुच्छियं (ला)। 7. जं जाहे भंडमग्घति (ता, ब, ला)। 8. कथा के विस्तार हेतु देखें परि.२, कथा सं.५८। 9. भोग अहि' (ता, ब, ला)।