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________________ पाठ-संपादन-जी-८७ 241 2377. बितियपद खुड्ड विणयं', गाहेंते अहव बोहिगादीसु। सावग-भये व घोरे, देज्जाही हत्थतालं तु॥ 2378. "विणयग्गाहण खुड्डे, कण्णामोड-खडुहा'-चवेडादी। सावेक्ख हत्थतालं, दलाति मम्माणि रक्खंतो // 2379. परपरितावणकरणं, चोदेति असातबंधहेतु त्ति। तं कह तस्साणुण्णा, तुब्भेहिँ कता? इमं सुणसु॥ 2380. कामं परपरितावो, असातहेतू जिणेहिं पण्णत्तो। आतपरहितकरो तू', इच्छिज्जति दुस्सीले स खलु॥ 2381. सिप्पंणेउणियट्ठा', 'घाते वि८ सहति लोइगा गुरुणो। 'ते इहलोगफलाणं, महुरविवागेस उवमा तु॥ 2382. अहवा वि रोगियस्सा, ओसह चाडूहि दिज्जते पुव्वं / पच्छा 'ताडेतुं पी१, देहहितट्ठाएँ दिज्जति से२॥ 2383. इय भवरोगत्तस्स वि, अणुकूलेणं तु सारणा पुव्वं / पच्छा पडिकूलेण वि, परलोगहितट्ठ कातव्वा // 2384. इहपरलोगे य फलं, विणीतविणयो अणुत्तरं लभति। संविग्गादिगुणेहिं, इमेहिं जुत्तो महाभागी॥ 2385. संविग्गो मद्दवितो, अमुई१३ अणुयत्तओ विसेसण्णू। उज्जुत्तमपरितंतो, इच्छितमत्थं लभति" साधू // 2386. बोहिभयसावगादिसु५, गणस्स६ गणिणो व अच्चए पत्ते। इच्छंति हत्थतालं, कालाइचरं७ व सज्जं वा॥ 1. विणयणं (ब)। 10. ओसह त्ति विभक्तिलोपादौषधमिति मंतव्यम् 2. यस्स उ गाहणया (बृ 5107) / (बृटी पृ. 1361) / 3. खडुगा (ब),खदुहा (ता, पा)। 11. तालेत्तुमवी (बृटी)। 4. फेडिंतो (ब)। 12. 2382 एवं २३८३-ये दोनों गाथाएं बृहत्कल्पभाष्य की 5. पुण (बृ 5108) / टीका में 'अत्रायं बृहद्भाष्योक्तः' उल्लेख के साथ (प. 6. दुस्सले (ब), छंद की दृष्टि से 'दुस्सिले' पाठ होना 1361) उदधत हैं। चाहिए। 13. अमुदी (ला, पा, ब), अमुती (पंक 1241) / __७.सिप्पं ति मकारोऽलाक्षणिकः (बृभाटी)। 14. लभई (ता), लहइ (बृ५११०)। 8. वाघाते (मु, पा, ला)। 15. बोहिकतेणभयादिसु (बृ५१११)। ..णय मधुरणिच्छया ते,ण होंति एसेविहं उवमा (बृ५१०९)। 16.4 (ला)। 17. 'इवरं (मु)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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