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________________ 236 जीतकल्प सभाष्य 2321. केवइयं वा दड्ड?, ता बेंति ण डज्झते हु उवहि त्ति। केण व णीतो उवधी?, इति सोच्चा पत्तिमप्पत्ति // 2322. लहुगा अणुग्गहम्मी, गुरुगा 'अप्पत्तिए मुणेतव्वा'। मूलं च तेणसदे, वोच्छेदपसज्जणा सेसे // 2323. एवं ताव अडझंते, अह सव्वं झामितो भवे उवधी। पेसवितो य गुरूहिरे, लद्धे तहिं अंतरा जो तु॥ 2324. लद्धे अत्तद्रुती, चतुलहुगा अह गुरूण ण णिवेदे। तो चतुगुरुगा तहियं, अणवठ्ठप्पो व आदेसा॥ 2325. एवं झामणहेतुं, अवहारो अह इदाणि पत्थवितं / आयरियादिण केणति, आयरियाणं तु अण्णेसिं॥ 2326. 'उक्कोसो सणिजोगो", पडिग्गही अंतरा तहिं लुद्धो। 'अत्तटुंते लहुगा, गुरुगा अदत्ते ऽणवट्ठो वा // 2327. एवं ता उवधिम्मी, अहुणा भत्तम्मि तेण्ण वोच्छामि। जइ पविसे असंदिट्ठो, ठवणकुले तो भवे लहुगा // 2328. अज्ज अहं संदिट्ठो, पुट्ठोऽपुट्ठो व२ साहते१३ , एवं / पाहुणगिलाणगट्ठा, तं च पलोट्टंति तो बितियं // 2329. मायाणिप्फण्णं तू, एव भणंतस्स होति मासगुरू / अहवा आगंतूणं, णालोए तह वि मासगुरू५ // 2330. कह पुण हवेज्ज णातं, साहूहिं तह य तेहिँ सड्डेहिं / जह खलु पविट्ठों अण्णो, ठवणकुलाई असंदिट्ठो? // 2331. गुरुसंघाडम्मि गते, भणंति गुरुजोग्ग णीयमेत्ताहे। ___णत्थि 'तूऽणुग्गहम्मी'१६, लहुगा अप्पत्तिए गुरुगा॥ १.त्तियम्मि कायव्वा (बृ५०७०)। 'ऽदत्ते' पाठ होना चाहिए। 2. गुरुणं (ब)। 10. लहुगा अदेंतें गुरुगा, अणवठ्ठप्पो व आदेसा (ब)। 3. गाथा के प्रथम चरण में अनुष्टुप् छंद का प्रयोग है। 11. प्रतियों में 'असंदिट्ठो' पाठ मिलता है लेकिन छंद की 4. णिविदे (पा, मु)। दृष्टि से 'ऽसंदिट्ठो' पाठ होना चाहिए। 5. एव (ला)। 12. वा (ला)। 6. वहारो (पा, ब)। 13. साहती (बृ 5086) / 7. उक्कोस सनिज्जोगो (बृ 5072) / 14. “गुरुं (ब)। ८.गहण (बृ)। 15. "गुरुं (ता, पा, ब, ला)। ९.प्रतियों में 'अदत्ते' पाठ मिलता है लेकिन छंद की दृष्टि से 16. तू ण उग्ग' (ब)।
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
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