________________ 218 जीतकल्प सभाष्य 2128. आपुच्छिऊण अरहंते, मग्गं देसेंति ते इमं / पमाणाणि य सव्वाणि, 'ऽभिग्गहे' य बहूविहे '2 // 2129. गणोवहिपमाणाइ, पुरिसाणं च जाणि तु। दव्वं खेत्तं च कालं च, 'भावं अण्णे" य पज्जवे॥ 2130. संसट्ठमाइयाणं, सत्तण्हं एसणाण तु। आदिल्लाहिं दोहिं तु, अग्गहो गह पंचहिं॥ 2131. तत्थ वि अण्णतरीए, एगीएँ अभिग्गहं तु काऊणं। उवहिणो' अग्गहो दोसुं, इतरो एगतरीय तु॥ 2132. अइरुग्गयम्मि सूरे, कप्पं देसेंति ते इम। आलोइय-पडिक्कंता, ठावयंति तओ. गणे॥ 2133. सत्तावीसं जहण्णेणं, उक्कोसेणं सहस्ससो। णिग्गंथसूरा भगवंतो, सव्वग्गेणं वियाहिया // 2134. सयग्गसो य उक्कोसा, जहण्णेण तओ गणा। गणो य नवगो वुत्तो, एमेता पडिवत्तिओ // 2135. एगं कप्पट्ठियं कुज्जा, चत्तारि पारिहारिगा। अणुपारिहारिगा चेव, चतुरो तेसि ठावए" // 2136. ण तेसिं जायते१२ विग्घ, जा मासा दस अट्ठ य। ण वेदणा ण वाऽऽतंको, ‘ण वा'१३ अण्णे उवद्दवा // 2137. अट्ठारससु पुण्णेसु, होज्ज एते उवद्दवा। ऊणिए ऊणिए यावि, गणे मेरा इमा" भवे५ // 1. मग्गहे (पा, ला)। 2. अभिग्गहे य बहुविहे (बृ 6457) / 3. उवहीगणपमाणाणि (ता, पा, ब, ला), यहां हमने बृहत्कल्पभाष्य के पाठ को मूल में रखा है। 4. भावमण्णे (बृ 6458) / 5. हिणा (ला)। 6. सूरम्मि (ता, पा, ब)। 7.06460 / 8. बृ६४६१। 9. "वत्तीओ (पा, ला, मु),बृ६४६२। 10. एतेसि (मु, ब), तेसिं (बृ)। 11. बृ 6463 / 12. जायती (बृ६४६४)। 13. णेव (बृ)। 14. इमे (ता, ला, ब)। 15. बृ 6465 /