________________ 216 जीतकल्प सभाष्य 2108. आहार-उवधि-सेज्जा, उग्गमउप्पादणेसणासुद्धं / . जो परिगिण्हति णियतं, उत्तरगुणकप्पिओ स खलु // 2109. सरिकप्पे सरिछंदे, तुल्लचरित्ते विसिट्ठतरगे वा। ___'साधूहिं संथवं कुज्जा', णाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं // 2110. सरिकप्पे सरिछंदे, तुल्लचरित्ते विसिट्ठतरगे वा। आदेज्ज भत्तपाणं, सएण लाभेण वा तुस्से // 2111. इय सामाइयछेदे, जिणथेराणं ठिती समक्खाता। एत्तो णिव्विसमाणे, णिव्विढे यावि वोच्छामि॥ 2112. परिहारकप्पं वोच्छामि', परिहरति जहा . विद्। आदी मज्झऽवसाणे य, आणुपुव्विं जहक्कमं॥ 2113. भरहेरवयवासेसु, जदा तित्थगरा भवे। . पुरिमा पच्छिमा चेव, 'परिहारी तेसु होति तु"॥ 2114. मज्झिमाण न संती तु, तित्थेसुं परिहारिया। न यावि य विदेहेसु, विज्जती परिहारिया // 2115. केवतियकालसंजोगो, गच्छो तु० अणुसज्जती। तित्थंकरेसु पुरिमेसु, तहा पच्छिमगेसु य॥ 2116. पुव्वसतसहस्साई, पुरिमस्सऽणुसज्जती। जम्हा ण पडिवजंति, दोण्ह गच्छा परेण तु // 2117. देसूणपुव्वकोडीओ, दो सा दोण्ह भवंति तु। दो सा एगूणतीसा तु, तेण ऊणा ततो भवे // 2118. वीसग्गसो य वासाई, चरिमस्सऽणुसज्जते। जाव देसूणगा दोण्णि२, सया वासाण होति तु॥ १.बृ 6444 / 2. कुव्वे संथव तेहिं (नि 2147) / 3. बृ 6445, पंक 1510 / 4. बृ 6446, पंक 1509, नि 2148 / 5. पवक्खामि (बृ 6447) / 6. हरितव्वं (पा, ला, मु)। 7. कप्पं देसेंति ते इमं (बृ 6448) / 8. हारीया (ता, पा, ला)। 9. इयं कालसंजोगं (बृ 6449) / 10. तू (मु, ब)। 11.6 (6450) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है वीसग्गसो य वासाई, पच्छिमस्साणुसज्जती। 12. दोण्णिं (मु)।