________________ पाठ-संपादन-जी-७१ 215 2098. थेराण सत्तरी खलु, वासासु ठितो उडुम्मि मासो तु। वच्चासितो तु कज्जे, जिणाण णियमट्ठ चतुरो वा // 2099. दोसासतिरे मज्झिमगा, अच्छंती जाव पुव्वकोडी तु। विहरंति य वासासु वि, अकद्दमे पाणरहिते य॥ 2100. भिण्णं पि मासकप्पं, करेंति तणुगं पि कारणं पप्प। जिणकप्पिया वि एवं, एमेव 'महाविदेहे वि५॥ 2101. एतं ठितम्मि मेरं, अद्वितकप्पे य जो पमादेति। सो वट्टति पासत्थे, ठाणम्मि 'तगम्मि वज्जेज्जा // -- 2102. पासत्थसंकिलिटुं, ठाणं जिणवुत्तं थेरेहि य। - तारिसं तु गवेसंतो, सो विहारे ण सुज्झति // 2103. पासत्थसंकिलिटुं, ठाणं जिणवुत्तं थेरेहि य। तारिसं तु विवज्जतो, सो विहारे 'तु सुज्झति" // 2104. जो कप्पठितीमेत०, सद्दहमाणो करेति सट्ठाणे। तारिसं तु गवेसेज्जा, जतो गुणाणं अपरिहाणी॥ 2105. ठितमठितम्मि'२ दसविधे, ठवणाकप्पे य दुविधमण्णतरे। उत्तरगुणकप्पम्मि१३ य, जो सरिकप्पो स संभोगो // 2106. ठवणाकप्पो दुविधो, अकप्पठवणा य सेहठवणा य। पढमो अकप्पिएणं१५, आहारादी ण गिण्हावे.६ // 2107. अट्ठारसेव पुरिसे, वीसं इत्थीउ१७ दस नपुंसे य। दिक्खेति जो न एते, सेहट्ठवणाएँ सो कप्पो॥ 1. य (बृ 6434) / 2. दोसा असति (ता, ब, ला)। ३.वि (बृ६४३५)। ४.विचरंति (ब)। 5. हेसु (बृ६४३६)। 6. एवं (बृ 6437) / 7. तगं विव' (बृ)। 8.66438 / ९.विसु (बृ६४३९)। 10. ठितिं एयं (बृ 6440) / 11. ण परि. (ब)। १२.ठियकप्पम्मि (बृ६४४१), ठितिकप्पम्मि (नि 2149) / 13. "प्पं ति (ब)। 14. सरिसो उ (नि 5932) / 15. अकल्पिकेन अनधीतपिण्डैषणादिसूत्रार्थेन (बभाटी)। 16. बृ 6442 / 17. इत्थीण (मु, पा)। 18.66443 /