________________ 214 जीतकल्प सभाष्य 2087. सो तु परंपरएणं, संकमती' ताव जाव सट्ठाणं / जहियं पुण आवलिया, तहियं पुण 'ठाति अंतम्मि" // 2048. ते पुण 'जहा तु एक्काए, वसहीए अहव पुप्फकिण्णा तु। अहवा वि तु संकमणे, दव्वस्सिणमो विधी अण्णो॥ 2089. सुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोवे य. संततीभेदे / 'संकमणट्ठा दव्वे, जोगे कप्पे य आवलिया" // 2090. पुव्वट्ठिताण खेत्ते, जदि आगच्छेज्ज अण्ण आयरिओ। बहुसुत बहुआगमितो, तस्स सगासम्मि जइ खेत्ती // 2091. किंचि अहिज्जेज्जाही, थोवं खेत्तं च तं जदि हवेज्जा। ताहे असंथरंता', दोण्णि वि साधू विवज्जेंति // 2092. अण्णोण्णस्स सगासे, तेसिं पि य तत्थऽहिज्जमाणाणं / आभवणा तह चेव य, जह भणितमणंतरे सुत्ते // 2093. एवं णिव्वाघाते, मास चतुम्मासिओ - तु थेराणं। कप्पो कारणतो पुण, अणुवासो कारणं जाव'५ // 2094. एसो तु मासकप्पो, थेरकप्पो य वण्णिओघेणं / अहुणा ठितमठितं तू, थेराणं इणमु वोच्छामि। 2095. सो थेरकप्पों दुविहो, अद्वितकप्पो य होति ठितकप्पो। एमेव जिणाणं पी, ठितमठितो होति कप्पो तु२॥ 2096. पज्जोसवणाकप्पो, होति ठितो अद्वितो य थेराणं। एमेव जिणाणं पी, 'दुह ठितमठितो य णातव्वो '13 // 2097. चातुम्मासुक्कोसे, सत्तरि राइंदिया . जहण्णेणं / ठितमट्टितमेगतरे, कारणवच्चासितऽण्णतरे५॥ १.संकामति (पंक 2579) / 2. अंतरे ठाति (पंक)। 3. ठित (पंक 2580) / 4. संकमणदव्व मंडलि, आवलिया कप्पअणुवासा (पंक 2581) / 5. पंक 2582 / 6. तह ति (ब)। 7. असंवरंता (पा, ब, ला)। 8. विसज्जेंति (पंक 2583) / 9. पंक 2584 / 10. कप्पा (ता)। 11. पंक 2585 / 12. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'मासकप्पे त्ति गतं' का उल्लेख है। 13. कप्पो ठितमट्ठितो होति (बृ 6432, पंक 1361) / 14. “एग (पा, ला, मु)। 15. बृ 6433, पंक 1362 /