________________ पाठ-संपादन-जी-७१ 213 2078. वासावासपमाणं, आयारउदुप्पमाणितं कप्पं / एतं अणुम्मुयंतो, जाणसु अणुवासकप्पो तु॥ 2079. आयारपकप्पम्मी, जह भणितं तीय संवसंतो वि। होति अणुवासकप्पो, तह संवसमाण दोसा तु॥ 2080. दुविधे विहारकाले, वासावासे तहेव उदुबद्धे। 'मासातीतेऽणुवधी'५, वासातीते भवे उवधी // 2081. उडुबद्धिगेसु अट्ठसु, 'तीतेसुं वास तत्थ ण वि" कप्पे। घेत्तूणं . उवहिं खलु, वासातीतेसु कप्पति तु // 2082. वासउदुअहालंदे, इत्तिरिसाहारणोग्गहपुहत्ते / संकमणट्ठा दव्वे, गच्छे पुप्फावकिण्णा तु॥ 2083. वासासु चउम्मासो, उदुबद्धे मासो लंद पंच दिणा। इत्तिरिओ रुक्खमूलें, वीसमणट्ठा ठिताणं तु // 2084. साहारणा तु एते, समट्ठिताणं१२ बहूण गच्छाणं। एक्केण परिग्गहिता, सव्वे वोहत्तिया होति // 2085. 'संकमणऽण्णोण्णस्सा'१५, सगासे जइ तु ते अहीयते। सुत्तत्थतदुभयाई, सव्वो६ अहवा वि पडिपुच्छे / 2086. ते पुण मंडलियाए, आवलियाए व तं तु गिण्हेज्जा। मंडलियमहिज्जंते, सच्चित्तादी तु. जो लाभो // 1. आयारे उ प्पमा (पंक 2570), आयारे से भाष्यकार का तात्पर्य निशीथ अथवा निशीथभाष्य से है। 2. कप्पं (पंक)। 3. पंक 2571 / 4. उडु (पंक 2572) / 5. मास अती (पा, ला), ते अणुवहि (ब, पंक)। 6. उव्यट्टिएसु (ता, पा, ला)। 7. मासातीतेसुं तत्थ वास ण तु (पंक 2573) / 8. वासासु तु तीते (मु, पा)। ९.ति (ब)। 10. रणे पुहुत्ते य (पंक)। ११.पंक (2574) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है उग्गह संकमणं वा, अण्णोण्णसकासऽहिज्जते। १२.पंक 2575 / 13. समगठि” (मु, ब)। 14. वोहित्तिया (पंक 2576) / 15. "णण्णमण्णस्स (पंक 2577) / 16. संघे (पंक)। 17. पंक 2578 /