SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 204 जीतकल्प सभाष्य 1987. तस्स इमे भेदा खलु, खंधदुवारे य समण पाउरणे। गरुलद्धंसे पट्टे, लिंगदुवे या इमा भयणा // 1988. लहुगो लहुगो लहुगा, तिसु चतुगुरुगा य होति बोद्धव्वा। गिहिलिंग-अण्णलिंगे, दोसु वि मूलं तु बोद्धव्वं // 1989. कुव्विज्ज कारणे पुण, भेदं लिंगस्सिमेहि कज्जेहिं / गेलण्ण रोग लोए, सरीरवेयावडियमादी // 1990. आसज्ज खेत्तकप्पं, वासावासे अभाविते असहू। “काले अद्धाणम्मि य, सागरि तेणे य पंगुरणं / 1991. असिवे ओमोदरिए, रायगुडे पवादिदुढे वा। आगाढे अण्णलिंगं, कालक्खेवो व गमणं वा // 1992. संघस्सोह-विभागे, समणा 'समणी य कुल-गणस्सेव"। - कडमिह ठिते ण कप्पति, अद्वितकप्पे जमुद्दिस्स // . 1993. आयरिए अभिसेगे, भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा उ। 'तिक्खुत्तऽडविपवेसे'", तियपरियट्टे० ततो गहणं // 1994. तित्थंगरपडिकुट्ठो१२, आणा अण्णात उग्गमो ण सुज्झे। अविमुत्ति अलाघवता, दुल्लभसेज्जा विउच्छेदो१३ // 1995. पुरपच्छिमवज्जेहिँ, अवि कम्मं जिणवरेहिं लेसेणं / वुत्तं४ विदेहगेहिं, ण य सागरियस्स पिंडो तु५ // 1. 1987 एवं १९८८-इन दो गाथाओं के स्थान पर 7. “णीण कुल गणे संघे (बृ 6376) / बृ (6373) में निम्न गाथा मिलती है- 8. पंक 1296 / खंधे दुवार संजति, गरुलद्धंसे य पट्ट लिंगदुवे। 9. अडविपवेसे असती (पंक 1297) / लहुगो लहुगो लहुगा, तिसु चउगुरु दोसु मूलं तु॥ 10. चउप (बृ 6377) / 2. इस गाथा के बाद प्रतियों में 'अहवा इमेहिं कारणेहिं' 11. प्रतियों में इस गाथा के बाद 'उद्देसिय त्ति गतं' का का उल्लेख है। उल्लेख है। 3. वासाठाई (मु)। 12. तित्थगरप्प (ला), तित्थगरपडिक्कुट्ठो (ता)। 4. पाउरणं (बृ 6371) / 13. य वोच्छेदो (नि 1159, बृ 3540), बृ 6378, 5. व वादि' (बृ 6374) / पंक 1298, प्रसा 806 / 6. पंकभा 1284, इस गाथा के बाद प्रतियों में 'अचेल 14. भुत्तं (मु, नि 1160, प्रसा 807) / ' त्ति गतं' का उल्लेख है। 15. बृ. 3541 /
SR No.004291
Book TitleJeetkalp Sabhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jitkalpa
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy