________________ पाठ-संपादन-जी-७१ 203 1977. दुविधा होंति अचेला, संताचेला असंतचेला य। तित्थगरऽसंतचेला, संताचेला भवे सेसा॥ 1978. संतेहिँ वि चेलेहिं, किह पुण समणा अचेलगा होति?। भण्णति सुणसू चोदग!, जह संतेहिं अचेला तु // 1979. सीसावेढियपोत्ति, णदिसंतरणम्मि णग्गयं बेति। जुण्णेहिं णग्गिय म्हिं, तुर सालिय! देहि मे पोत्तिं // 1980. जुण्णेहिं खंडिएहि य, असव्वतणुपाउएहिं ण य णिच्चं। संतेहिं . वि. णिग्गंथा, अचेलगा होंति चेलेहि // 1981. एवं दुग्गतपहिया, 'वाचेलगा" होति ते भवे बुद्धी। ते खलु असंततीए, धरंति ण तु धम्मसद्धाए // 1982. सति लाभम्मिं साधू, गेहंतऽसहवणाइँ ताई तु। ताणि वि खंडियमादी', धरेंति तह धम्मबुद्धीए / 1983. आचेलक्को धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमगाण जिणाणं, होति 'सचेलो अचेलो११ वा॥ 1984. पडिमाएँ पाउया वा, णऽतिक्कमंते तु मज्झिमा समणा। पुरिमचरिमाण अमहद्धणा तु भिण्णाणिमो१२ मोत्तुं / 1985. णिरुवहतलिंगभेदे, णिक्कारणतो ण कप्पते कातुं / किं पुण तं णिरुवहतं?, भण्णति. अहजातलिंगं तु॥ 1986. जम्मं दुविधं होती, मातूकुच्छिम्मि पढम जं जम्म। भवसंसारचउक्के, निप्फिडितो. बितिय पव्वजं // 1. वृ (6365) में इस गाथा का पूर्वार्द्ध एक वचन दुविहो होति अचेलो, संताचेलो असंतचेलो य। 2. सिस्सा' (मु), "यपुत्तं (बृ 6366) / 3. णदिउत्तर (ब)। 4. पोती (पा, ला, मु)। 5. मि (पा, ला)। 6. बृ 6367 / 7. अचे (बृ 6368) / 8. धम्मबुद्धीए (ब)। 9. खंडय' (ब)। 10. “स्सा (मु)। 11. अचेलो सचेलो (बृ 6369) / 12. भिण्णा इमे (बृ 6370) /