________________ पाठ-संपादन-जी-७०,७१ 201 1958. एमेव य' रुक्खे वी, भंजितु आणेह बेति अपरिणतो। णिप्फावादी रुक्खे, भणामि ण दुमे अहं हरिते // 1959. एमेव य बीयाई, आणेती आणिते गुरू भणति। अंबिलि विद्धत्थाणि व, भणामि न वि रोहणि समत्थे // तह धितिसंघयणोभयसंपण्णा तदुभएण हीणा य। आतपरोभयणोभयतरगा तह अण्णतरगा य॥७०॥ 1960. धितिदुब्बल देहें बली, धितिबलिओ देहदुब्बलो कोइ। - कोई५ दोहि वि बलिओ, दोहिं पी दुब्बलो कोइ॥ 1961. दोहि वि बलिए सव्वं, धितिहीणे जत्थ चिट्ठति धिती से। ___ आसज्ज व देहबलं, देज्जा लहुगं उभयहीणे // 1962. केयी पुरिसा पंचह, आयतरादी इमे उ णातव्वा। ... पढमो आयतरो तू, णो परओ परतरे बितिओ // 1963. उभयतरो तू ततिओ, णोभयह चउत्थगो उ णातव्वो। अण्णतरो परओ तू, पंचमगो होति णातव्वो॥ 1964. आयतर-परतराणं, को णु विसेसो? त्ति एत्थ चोदेति। . . आततरो-चउत्थादी, जं दिज्जति तं तु नित्थरति // 1965. वेयावच्चकरो तू, गच्छस्स उवग्गहम्मि वट्टति तु। एसो तु होति परतरों, चतुभंगो एव णातव्वो॥ 1966. वयावच्चतराणं, एक्कं सक्केति दो न णित्थरति। पंचमगो तू पुरिसो, अण्णतरो एस णातव्वो॥ कप्पट्ठियादयो वि य, चतुरो जे सेतरा समक्खाता। सावेक्खेतरभेदादयो य जे ताण पुरिसाणं॥ 71 // 1. x (पा, ला.)। 3. अण्णयरतरगा (ता, ब)। 2. गा. 1958 और 1959 के स्थान पर ब (802) 4. "बलीओ (ला)। में निम्न गाथा मिलती है 5. कोयी (ब)। . निष्फाव-कोद्दवाईणि बेमि रुक्खाणि न हरिए रुक्खे। 6. इस गाथा के बाद सभी प्रतियों में 'अहवा पंच ' अंबिल विद्धत्थाणि अ, भणामि न विरोहण समत्थे॥ विकप्पा' का उल्लेख है।